सवाल
आचार्य भगवन् !
ब्रहचारी विद्याधर जी खेस नहीं रखते थे,
पर भगवन् !
वह तो फलालेन का सूती ही होता है
क्या सोच थी इसके पीछे आपकी ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
ओ हो…
फलां,
फलां लेन
लेकर फलालेन क्यों बढ़ानी
क्या अपनी लेन पाई
क्षितिज-छोर भाई !
जो और की लेेन बढ़ाने चले,
बुझाओ जल्दी-जल्दी घर अपना भी जले
सन्तों ने,
लेकर मौन रक्खा अरिहन्त होने
होकर अरिहन्त भी
छियासठ दिन तक दिव्य धुनि न खिरी
जाने हम क्यों फिर
आ फिरके
फिर फिर के
फिरें बने चकरी
सखे
पलट अखर भले
खे…स कहे
पर बातों में न आये,
बनती कोशिश व्रति इससे दूर रहे
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
Sharing is caring!