सवाल
आचार्य भगवन् !
तत्त्व ग्रहण ही जब टेड़ी खीर है,
तब आप जाल में फँसी पहली मछली छोड़,
उसे जीवन दान देने वाले के लिए,
तच्व-पथ-ग्राहक बनने की बात कहकर के क्या मोक्ष मार्ग सहजो-सरल नहीं कर रहे हैं
जहाँ अंगुलिंंयों पर गिलने लायक सम्यक् दृष्टि हैं
वहाँ आप तो व्रति तिली जैसे
पानी में अतराने की बात कर रहे है ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिये…
टेढ़ी खीर
माना तत्त्व ग्रहण
पर तत्व पथ-ग्रहण तो ऐ’ री खीर
और ऐसी वैसी भी नहीं
मलाई, मिसरी, केशर डली
ऐसी खुशबू ‘के मन में दिवानगी छा जाये
देखते ही मुँह में पानी आ जाये
और चखना तो जादू
जब ऐसा हो
तब किन किन अपने अपनों को न मिल जाये
भौ जल-तीर कहो
और छुपाये राज अंगुली
अगली अगली और अगली
चल चल ‘री
उसकी गणित दूसरी
उस पार शिव-भूत भी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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