सवाल
आचार्य भगवन् !
जब माँ श्री मन्ती कहती थीं,
बालक विद्याधर से,
‘के मैं तो छोटी सी, सुन्दर सी, बहुरिया लाऊँगी,
अपने विद्या के लिये,
तब आप की क्या प्रतिक्रिया रहती थी,
आपको गुद-गुदी होती थी,
या फिर कुछ अलग ही अनुभूति होती थी,
बताईये ना गुरुजी ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सच, जमाना सार्थक नाम रखता है
और इस कसौटी पर खरा उतरता है
शब्द ‘बहु’
धीरे-धीरे
आहिस्ते-आहिस्ते
देखते देखते
एक से नेक
जुड़ते-रिश्ते
बिछुड़ते-रस्ते
भुक्ति-मुक्ति के
कहीं शून्य में,
यूँ पुण्य और फल-पुण्य में अटक
‘कर-नाटक’
जनम मिलता रहा
चेहरा यम खिलता रहा
पर माँ
बार इस बारिस न आँसू बहा
कुछ और ही अरमाँ
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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