सवाल
आचार्य भगवन् !
दरवाजे के लिए आप न तो खोलते है,
और न ही लगाते है,
ऐसा मुनिराजों के मुख से सुना है,
तो इसमें क्या कारण है,
भगवन् !
गुफा में रहते थे,
तब तक तो ठीक था,
बढ़ा पत्थर कैसे उठाये,
पर अब तो दरवाज़ा
थोड़े से ही धक्के से खुल जाता है,
और लग भी जाता है,
सो मन समाधान चाहता है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
यही तो मैं भी कह रहा हूँ
खुल जाता है
धकाते ही दरवाज़ा आजकल
आपस में मिल जाता है
यदि थोड़ा सा वक्त लगाता तो अच्छा था
दरवाज़े के इर्द-गिर्द जो बच्चा था
छिपकली
कम से कम निकलने उसे मिल हो जाती गली
प्रायः हम देखते हैं
पूँछ से बदन खुली
छिपकली
यही कतरते हैं
बगैर पूछ-ताछ किये
सो दरवाज़ा न छूने के पीछे,
यही इरादा
‘के एक बेजुबाँ एक नाँदा
अपनी पूरी ज़िन्दगी जिये
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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