सवाल
आचार्य भगवन् !
भैय्या महावीर तो आपका नाम लेकर,
विद्याधर कह पुकारते थे,
जानते थे, कुछ भी कर सकते हैं आप,
लेकिन छोटे भाई अनंत और शान्ति तो आपको ‘भाई’ अर्थात् “बहुत भाते हैं आप मुझे”
यह संबोधन देते थे,
उन्हें अपने क्या कहकर मनाया था,
‘कि मैं अब घर फिरके न आऊँगा ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
पाई-पाई को
जहां
यहाँ
लड़ते भाई-भाई दो
जमा…ना
मैं ही नहीं,
ये दोनों भी मुझे, खूूब भाते थे
पर करूँ क्या ?
जर, जोरु, और जमीन ये भी
अरुक, अथक चले आते थे
चीन
तीन
अडंगे फतह
ने सिर्फ झगड़े की वजह
और तो सब बड़े थे,
मौन और चाहते थे मान
इन दोनों को समझना कठिन था,
थे ये बड़े ही नादान
देर रात थपकिंयाँ देने के बाद भी
इनकी ‘पलकें’ पल के लिये भी न झँपीं
इन्हें मैं रोते ही छोड़े के आया
और क्या, यही तो माया
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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