सवाल
आचार्य भगवन् !
मैं ग्राम जामनेर का
‘गुरु प्रतिक्षा’ नाम
एक छोटी सी कुटिया में
रहने वाला व्रति श्रावक हूँ
भगवन् हमारे ग्राम से जमुना नदी
शबरी के जैसे हाथों की ओट दे कर के भी
दूर दूर तक दिखलाई नहीं देती है
फिर जाने क्यों रक्खा है
हमारे गाँव का नाम जामनेर
हाँ जामुन के वृक्ष जरूर हैं ढेर,
क्या बस इतना ही देख करके
नाम जामनेर पड़ गया हमारे ग्राम का
भगवन् मानस असमंजस में पड़ा है मेरा
कृपा करके दूर कीजिये अज्ञान अँधेरा
नमोऽस्तु भगवन्
नमोऽस्तु भगवन्
नमोऽस्तु भगवन्
जवाब…
लाजवाब
सुनिये,
व्रती श्रावक तो छोड़िये,
सुधी श्रावक के पास से जमुना ही नहीं,
गंगा भी निकलती है
जैन पूर्वज ऐसे वैसे नहीं
दूर दृष्टि रखने वाले थे
‘के दूसरों की दुख-पीडा देखकर
हमारे बच्चों की आँखें
गंगा-जमुना बन चलें,
ऐसे ‘स्वभाव मार्दवं च’
सूत्र के लिये सिर्फ जिह्वा तक ही नहीं
जीवन में उतार पाये,
आने वाली पीढ़ी हमारी
ऐसी सोच रखकरके
उन्होंने नामकरण किया है
आपके गांव का जामनेर
और देखिये
जामुन के लिये
संस्कृत में जम्बू कहते हैं
सो कम नहीं
दो कदम आगे के
पुरु-पुरखे हमारे
जम्बूद्वीप की नाम राशि,
जामनेर की है हमारे हाथों में उन्होंने
‘के जम यानि ‘कि यमराज में
आचरण का एक डण्डा लगे
‘कि मरण स्मरण योग बन चले
इसलिये जम को जाम कहके पुकारा है
और पीछे जुड़ा
शब्द नेर’ नीर से बना है
मतलब नीर जिसे हम
पानी कहते हैं
उसे छोडकर
जाम यानि ‘कि दूध का जमा हुआ थक्का,
जिसे हंस अपनी चोंच डालते ही
एकमेक दूध पानी में से
ग्रहण कर लेता है
सो इस ग्राम के रहवासी
हंस बुद्धि रखने वाले बनें
ऐसा हमारे बुजुर्गों का मन्तव्य है
और सुनो
मेरे भगवन्
आचार्य गुरुदेव ज्ञान सागर जी
एक अर्थ और भेज रहे हैं
मेरे पास
वह भी आपके सामने रखता हूँ
बस अक्षर दूर-दूर पढ़ने हैं
‘जा’ मतलब जाननहार
‘मा ने’ यानि ‘कि मानियेगा
‘र’ मतलब आतम राम अपना
सच जैनी परिपाटी
विरची गई लगा लगा दूसरी ही माटी
जैनम् जयतु शासनम्
वंदे ज्ञान सागरम्
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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