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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -427

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
किंवदन्तिंयाँ,
लोकोक्तिंयाँ,
कहावतें,
सभी के सभी
एक सुर से कहते मिलते हैं
पूत तो कपूत हो सकता है
लेकिन माता कुमाता नहीं होती है
पर भगवान् नागिन तो अपने अण्डे
साबुत ही निगल जाती है
लोगों की नजर बचाकरके
रात बिरात नहीं
दिन दहाड़े ही
लोग वीडियो तक बना लाते हैं
उसे खबर ही नहीं रहती है
जाने किस गुनाह की सजा देकर
बच्चों की खबर ले रही है नागिन,
भगवन् माँओं का काम तो
बच्चों की खबर रखना है,
है ना गुरु जी
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब

देखिये,
अपने नौनिहालों के कारण ही
नाम पड़ा ना…गिन
‘के इन्हें मत गिनो,
मैंने इतने जाये हैं
‘के दूर अँगूठे,
सुदूर अँगुलिंयाँ,
पोरे भी न गिन पाये हैं
भले साथ-साथ हाथ, पैरों के चुनो
सुनो,
क्यों करेगी कतल
रखती जो माँ का दिल
कत्ल तो ये मिल करके करेंगे कल

माँ के लाड़ प्यार का
जाँ-से न्यार, दुलार का
कल दाँतों में जो धरेंगे गरल
मतलब विष
अफसोस
बस
आँसू अपने पोंछ इसलिये यही सोच
‘कि न रहेगा बाँस,
न बाजेगी बांसुरी
माँओं के बीच बन चली बुरी
सच
जहाँ दोई माँ का कोई जबाब नहीं
बेजोड़ी
माँ मारी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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