सवाल
आचार्य भगवन् !
देवी गान्धारी यदि
अपनी आँखों पर पट्टी नहीं बाँधतीं
तो राजा धृतराष्ट्र की
ज्यादा मदद कर सकतीं थी
आँखों पर पट्टी बाँध करके तो
स्वयं ही दूसरों के आश्रित
रहना हो चला होगा
अपने पतिदेव की
क्या सहायता कर पाईं होगीं वह
उन्हें ऐसा करने से
राजगुरुओं ने रोका नहीं था भगवन् ?
वैसे बड़े बुजुर्गों ने मना तो किया होगा
खूब समझाया भी होगा
‘के बहुरानी
ये तो अपने ही
पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाली
कहावत चरितार्थ करने जैसा कार्य है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिये,
सच कह रहे हैं आप
हाँ मदद तो कर सकतीं थी वह
लेकिन शायद ही आपको ध्यान हो,
मैं बता देना चाहता हूँ
‘के वह दूसरी ही कक्षा में पढ़ी हुईं थीं,
कुछ ज्यादा नहीं
अक्षर ढ़ाई बस
सो
मदद शब्द उन्हें
उनकी माँ ने
कुछ अलग ही तरीके से
पढ़ना सिख’लाया था
‘के
मद… द
अर्थात् मद, घमंड, अहम्,
अहंकार देने वाली है मदद,
जर्रा संभलना
आदि तीर्थकर पुत्र
भरत चक्रवर्ती के नाम से
पड़ चला नाम जिसका वह भारत
उस भारतीय संस्कृति में नारी
अर्धांगिनी तो है
लेकिन अधि-अंगिनी के लिये
कोई स्थान नहीं है,
पतिदेव के
कदम से कदम मिला करके चालना
बुज़ुर्गों ने विदा करते वक्त
कहा होगा
लेकिन सार्थ शब्द
‘माँ ने’ तो
यह कह करके
अपनी दुहिता को अलविदा
कहा होगा
‘के बिटिया रानी
अपने पति के पीछे पीछे चलना,
आँख लग चले
अपने पतिदेव की
तब देना कान की बाली को लेटने
और हाँ
पहले उठकरके सूरज को जगाना
पतिदेव के चरणों में ही
चारों धाम है तुम्हारे
सो ऐसी भगवती स्वरूपा गांधारी
जब उसके स्वामिन् की
आँखें नहीं हैं
तब अपनी आँखों का उपयोग करके
अधिक अंग वाली पत्नी बनके
अपने अधोपतन का रास्ता
कैसे खोल सकती थी
उसका निर्णय सर्वश्रेय हुआ
सभी पुरु गुरु लोगों ने मिल करके
एक सुर से कहा
वाह भगवती गांधारी
वाह
में तो तुझपे जाऊँ बलिहारी
वाह भगवती गांधारी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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