सवाल
आचार्य भगवन् !
रास्ते में एक जगह भीड़ जमा थी
जाकर देखा तो मदारी खेल दिखा रहा था
बन्दो डमरू की ताल पर नाँच दिखला रही थी
भगवान् कैसे छिन चालती है स्वतन्त्रता
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सच,
ऐसा कुछ हमारे साथ भी
घटित हो रहा है
‘जमूरे’
जमूँ…’रे
दूज का चाँद और ऊपर सितार
बड़ा ही मुश्किल बरखुरदार
चाँद-पूनम ऊपर तारा
एक छोड़ पा ही जाता पखवाड़ा
वैसे कहता सा कुछ-कुछ ये
जम…ऊ…’रे
हाय बेबश ! बड़े अभागे
पुतली छोड़, कठपुतली जो बने हैं
धागे ‘और’ अँगुली
जाने किस बात पर तने हैं
हाईकू
‘डमरू हाथ पूर्व-कृत करम
जमूरे हम’
ऐसा बुजुर्गों के मुख से
यदा-कदा ही नहीं
खूब सुनने में आता रहता हैं
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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