सवाल
आचार्य भगवन् !
वन अच्छा है,
जीवन में तो उलफतों के सिवा कुछ भी नहीं है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनो,
काँटों के बीच
फूल मुस्कान लेते रहते हैं
कुछ अटपटा सा नहीं लगता है
क्या सोच रखते होंगे
मुझे तो लगता है,
झूलते फलों को देख करके खुश हो लेते होंगे
और अपने आप को खुश-नसीब मान लेते होंगे
बड़ा सहजो-निराकुल तरीका है, यह भी
‘के हम किसी खुश व्यक्ति के आस पास रह रहे हैं
तो हमारा भी नसीब है,
सुदामा ने, द्वारका जाकर
जब किशन का वैभव देखा था
तब जलन का प्रशन न उठा था
बल्कि प्रसन का जशन मनाया था
हाईकू
ज्यादा काँटों की
‘जिन्दगी’
कम फूल की
न भूल भी
सच कड़वे होते हैं
जो कड़… वे कह रहे हैं
सो दूसरों को सुनाने जा रहे हों, यदि हम
तो सच ‘प्यार-यार’ की टोन में बोलते हैं
कड़… वे
यानि ‘कि निकल लो
और यदि कोई हमें सुनाये तो
सो, सिर्फ कान से मत सुनना
कान के पीछे तर्जनी, अंगूठा टिका
थोड़ा सा आगे ला करके कान को सुनना
और न सिर्फ सुनना,
गुनना,
चुनना,
सच विरले होते हैं
न सिर्फ घौंसला बनाने दी जगह
‘वृृक्ष ने’
चिड़िया के दिल पर कर ली फतह
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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