सवाल
आचार्य भगवन् !
‘माँ
रखती करिश्मा’
ऐसा क्यों कहते हैं
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
कलम थमा
नन्हें-नन्हें हाथों में थमाती है
सुनहरा कल माँ
गरम हुए बिना
‘दव’ जैसे
‘बाजी मारना’
कुहासे जैसे
सीखना माँ से
हो सामने जो अपना,
तो कैसे बाजी हारना
थोड़ी सी चीनी घोल दी माँ…ने
‘दाल गलाने’
बेजोड़ी घी चीनी
दें घोल मानें
अपने व्यवहार में
न आने पंक्ति हार में
तोड़ तिनके बलाएँ लेती है माँ
तहे-दिल से दुआएँ देती है माँ
गोद में लेके देती छुवा आसमाँ
बहुत देके कुछ भी तो नहीं लेती है माँ
भूलती माना
पर देकर दिढ़ोना बच्चे की बलाएँ लेना
भूलती माँ ना
ले अपने हाथों से
बालों में
मेरे
गालों में
तेल चुपड़ दिया बखूब
मा…ने
फिर कहा जा खेल आ होरी खूब
सच मम्मा मोरी खूब
किसी और ने दिया होगा चूर
लड्डू मोती चूर
माँ…ने दिया पूर
भरपूर
ऐसी वैसी थोड़ी ही
रखती पास माँ आसमाँ वाला नूर
जिसके आगे फीकी मिठाई होगी
वो संतरे की कली
माँ के हाथ से हो कर आई होगी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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