सवाल
आचार्य भगवन् !
निन्दक को आँगन कुटी छवाय
रखने के लिए क्यों कहा है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
निन्दक
नि यानि ‘कि निखारता
बिन गंग उदक
निन्दक
सर…दार
जिगर…दार शिख
खपा
‘अपना सर’
खुजला
निंदक
करता पर भला
स्वयं कहती
तॉंका-झॉंकी
लुप छुप झॉंकी, ‘कि बनी झॉंकी
थोड़ा भी मँजा
बने न निन्दक
क्या निराला
‘मिलने वाला’
थोथा ही मजा
निन्दक पुल
कहाँ ले,
पार उतारने के पैसे-धेले,
यानि ‘कि कुल मिला के
निरा मूर्ख बिलकुल
दीख पड़ा नहीं ‘कि मौका
मानौ चुग…ली
पर दे किसे रहे धोखा
हमसे अच्छा परिंदा
पढ़ा दूसरी कक्षा
दूर कोस जो पर निंदा
माने या, न माने
निंदक
पिछली रोटी खिलाई तुझे माँ-ने
तभी बहुत देर हो जाती है
बिना स्नेह ज्योत
खा जाती बाती है
अपने पैसों की खरच रा…ख
ख…रा
कर देता ‘वर…तन’
साफ-सुथरा
पाक
बने निन्दक राख
ज़मीं को पकड़ा दिया चोखा अनोखा
उड़ा दिया आसमां में थोथा
किरदार चालनी दे साथ
लगा क्या हाथ
सिवाय धोखा
लगा डंडा,
दे आस’मां से
लगा झंडा
भाई !
मुझे तो निन्दक ‘भाई’
नैय्या
न खिवैय्या
कराता पार
निंदक ‘पतवार’
सान पर चढ़ा
‘के मूल्य बढ़ा
हीरे का
भाग रेखा
सौभाग, देखा
निन्दक अपने समान एक
अब डूबी
‘कि तब डूबी
पनडुबी भी
दे लगा घाट
निंदक डॉट
न कर देना अनदेखा
अनोखा लेखा-जोखा
गीड़ अपना
अपनी आँखों से
कब, कहाँ, किसे दिखा ?
निन्दक ‘सखा’
छिप
छिपकली सी साधे रहे छत
हमारी बची रहे पत
निंदक सत्
शिव भी
न सिर्फ सुन्दर ही
अपनी बेशकीमती रबर ले, ले घिस
और खबर लेने मिस
आप आप न छूने लगें सितारे, दामन गर्दिश
तलक देर घोला जाता है निंदा विष
उबली खा…ना
बखूब चीज़ खूब
बघरी खा…ना
क्या उगली खाना ?
हॉं…हॉं…
और क्या चुगली खाना
आँखों में
गीड़ के साथ-साथ
‘लगा-के भीड़
रहते अंगारे भी
ओ ! बंजारे ‘जी
जो अगनी ‘ना’
वो देती दरका आईना
दिखाने के पहले
आ…ई…ना
ना…ई…आ
खूब आईना देख ले
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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