सवाल
आचार्य भगवन् !
आत्म हत्या को पाप क्यों माना है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनिये,
ध्यान से सुनिये,
आत्म हत्या को सिर्फ पाप नहीं
महा पाप कहा है
ऐसा निधत्ति निकाचित कर्म का वज्र लेप
जो भव भव तक किसी भी तरीके से
मिटने वाली नहीं है
चूँकि खुदकशी न करके भले
हम जीवन भर भी झिर लग पाप करते
लेकिन जिनेन्द्र देव सूर्य का
एक बार का ही दर्शन पर्याप्त था
सारे पाप जल को सुखाने के लिये
और अब भगवान् तो दर्शन देंगे नहीं
उनकी रहमत से,
नेक, नेमत से
नफरत जो कर लेंगे हम
असमय मृत्यु को गले लगा करके
खुदकशी का मतलब रख आपा,
आप सुलझा सकने की गुंजाइश वाले धागों को इस कदर से उलझा देना
‘के अब पूरा परिवार मिलकर भी
धागे सुलझा न सकेगा कभी
सच
तीर आर-पार चला जाये,
तो ले हद दुखता है
कोई धस के,
दिल बस के, छोड़-छाड़ चला जाये
तो बेहद दुखता है
और सुनते हैं,
इस संसार से जाने के बाद,
उसके दरबार में दर्ज करानी पड़ती है हाज़री
पर अब वो रूठ जो चला है
उसका किरदार माँ चुक चालेगा
हमारे प्रति वो पत्थर दिल बन चालेगा
फिर मारना सिर,
फूटेगा सिर ही हमारा
छोड़ दो बातें ही हैं सब,
अब वो न मानने वाला
तो समय रहते सँभलो
बुरा वक्त थोड़ा द…बा
बा…द
हो चालेगा हवा
सो…नाक की सूद में चले चलो
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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