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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -332

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !

‘एक गीत’
आकर जो देखा तो पिंजरा खाली मिला
चले जाते पर कह कर तो जाते अलविदा
दौड़े दौड़े ही तो आ रहे थे हम
कम से कम
आँखें अपनी ये सामने तेरे कर लेते नम
ज्यादा न सही थोड़ा-बहुत तो बँटा तो तेरा गम

रात भर से ये पंक्तियाँ रहकर याद आ रही हैं
मेरा जिगरी दोस्त बिना बताये मुझे,
इस दुनिया को छोड़कर चला गया है
मैं क्या करूँ
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
आया था बाँध मुट्ठी,
चल दिया मैं हाथ पसारे
लेकर के किये कर्म अपने, गोरे काले
चल दिया मैं हाथ पसारे

हाथ न कुछ भी आया
हा ! हाय ! ये कैसी माया
चला गया और गाँठ का प्यारे
चल दिया मैं हाथ पसारे

कोई हमेशा के लिये यहाँ, रहने कहाँ आया
शब्द कर झर-झर झर कर, पीले पत्ते ने बतलाया पड़ा रहता धन गड़ा यही
पड़ा रहता पिंजरा यहीं
और पंछी उड़ चले कहीं
लगता भी पता नहीं
लहर-लहर कर लहराये यहाँ बस परचम माया
कोई हमेशा के लिये यहाँ, रहने कहाँ आया
शब्द कर झर-झर झर कर, पीले पत्ते ने बतलाया

खड़ा रहाता कुल बड़ा यहीं
पड़ा रहता गुल मुर्झा यहीं
और खुशबू उड़ चले कहीं
लगता भी पता नहीं
कोई हमेशा के लिये यहाँ, रहने कहाँ आया
शब्द कर झर-झर झर कर, पीले पत्ते ने बतलाया
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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