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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -328

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !

‘एक गीत’
मुड़-कर न आये, जो गये
तुम…
जाने कहाँ खो गये

है भी तो नहीं पंख,
लगा-के जिनको
खोज लाऊँ मैं तुम्हें
एक करके रात और दिन को
भिंजा… आँखें ये दो गये
तुम… जाने कहाँ खो गये

गुमान थे
अरमान थे
तुम मेरी जान थे
भिंजा… आँखें ये दो गये
तुम… जाने कहाँ खो गये

मुस्कान थे
आन बान थे
तुम मेरी शान थे
भिंजा…. आँखें ये दो गये
तुम… जाने कहाँ खो गये.

रात भर से ये पंक्तियाँ रहकर याद आ रही हैं
मेरा जिगरी दोस्त बिना बताये मुझे,
इस दुनिया को छोड़कर चला गया है
मैं क्या करूँ
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
सुनिए,
आपने कविता में प्रश्न किया,
मैं भी कविता में उत्तर देता हूँ

छाया का भरोसा मत करना
काया का भरोसा मत करना

तम अंधेरा क्या आया
अनजान बनी छाया
बेजान पड़ी काया
यम लुटेरा क्या आया

रात दिन कर इक जोड़ी
साथ न जाती कौड़ी
माया का भरोसा मत करना
काया का भरोसा मत करना
छाया का भरोसा मत करना

झूठ सुख दुख की साथी
कूट छाती रह जाती
जाया का भरोसा मत करना
काया का भरोसा मत करना
छाया का भरोसा मत करना

सच…

बच सके तो बच हिरना
न किसी का सिंह अपना

प्रसिद्ध ही सिंहावलोकन
बड़े बड़े, लोहु भरे लोचन
पंचानन नाम भर ना
बच सके तो बच हिरणा

नोंकदार लम्बे नाखून
वन्दे ! पंचे लथपथ खून
दहाड़ करे बहरा शक ना
बच सके तो बच हिरणा

भर छलाँग क्षितिज चूमे
छू आसमाँ पूँछ झूमे
चरण सिंह लखन इक शरणा
बच सके तो बच हिरणा
न किसी का सिंह अपना
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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