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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -326

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !

‘एक गीत’
मिल गया क्या तुम्हें, मुझसे छुपा-के
जाते, चले जाते बता-के
अब आँसू मेरे, न थम रहे
और छुप-छुप के देख, तुम रहे

तुम ऐसे तो ना थे
पोंछ भी दो, आँसू मिरे आके
जाते, चले जाते बता-के
मिल गया क्या तुम्हें, मुझसे छुपा के

तुम्हें नैन मिरे, जा दूर-दूर देखते
और तुम आँख-मिचौनी खेलते

तुम ऐसे तो ना थे
भर दो मेरी आँखों में नूर आ-के
जाते, चले जाते बता-के
मिल गया क्या तुम्हें, मुझसे छुपा के

रात भर से ये पंक्तियाँ रहकर याद आ रही हैं
मेरा जिगरी दोस्त बिना बताये मुझे,
इस दुनिया को छोड़कर चला गया है
मैं क्या करूँ
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
सुनिए,
आपने कविता में प्रश्न किया,
मैं भी कविता में उत्तर देता हूँ

यहाँ आना और जाना है
ये जहाँ मुसाफिर-खाना है

दो दिन तो रुक लिया
बहुत हुआ
दो छिन भी रुक लिया
मन्नत दुआ
चलो चाँद सूरज को आना है
ये जहाँ मुसाफिर खाना है
यहाँ आना और जाना है
ये जहाँ मुसाफिर-खाना है

पीले पत्ते, कह झर-झर झर चले
नये पत्तों के लिये जगह कर चले
चुक चुका आब-दाना है
ये जहाँ मुसाफिर खाना है
यहाँ आना और जाना है
ये जहाँ मुसाफिर-खाना है

आ दिशा दिशा से, परिंदे जुड़ते
देश अपने-अपने, सुबहो उड़ते
सिरहाना ऊपर सिर आना है
ये जहाँ मुसाफिर खाना है
यहाँ आना और जाना है

सच…

मण्डूक बच के दिखा
काल सर्प योग लिखा

लपलपाती जिह्वा
जप जपती विष हवा
फणा जा आसमाँ टिका
मण्डूक बच के दिखा
काल सर्प योग लिखा

आँख लाली वाली
साख गहरी काली
पटका फणा पाताल डिगा
मण्डूक बच के दिखा
काल सर्प योग लिखा

दाँत पाँत माहुरी
जन्म जात बहादुरी
मन जप ओंकार भिंगा
मण्डूक बच के दिखा
काल सर्प योग लिखा
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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