सवाल
आचार्य भगवन् !
काजल कोठरी है,
ग्रहस्थ धर्म बच बच के भी चादर
जैसी आपने उढ़ाई, ज्यों की त्यों उतारना
नामुमकिन सा लगती है,
पैर फिसल ही चलता है
है ही चिकनी इतनी काई
कैसे मन को समझायें
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
कौन यहाँ, बेदाग जी रहा है
चाँद भी तो, ले दाग जी रहा है
गम्भीर भले
अन्दर, समन्दर
मोति ही नहीं, मौत भी पले
जा देखा सारा जहाँ
कौन यहाँ, बेदाग जी रहा है
चाँद की तो, ले दाग जी रहा है
सुगंधित भले
बदन, चन्दन
संग, भुजंग
लग हाथ, लगे हाथ घर भीलनी जले
कोयल कोयला समाँ
जा देखा सारा जहाँ
कौन यहाँ, बेदाग जी रहा है
चाँद की तो, ले दाग जी रहा है
कोमल भले
मुक्ता फल,
जल-दल कमल
मंजिल भ्रमर
चोर दिल-नजर
मगर कीचड़ खिले
घर राहु-केतु आसमाँ
जा देखा सारा जहाँ
कौन यहाँ, बेदाग जी रहा है
चाँद की तो, ले दाग जी रहा है
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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