सवाल
आचार्य भगवन् !
आप सुभग कहते हैं
अपनों के लिए,
और दुनिया ठग कहती है
आप अपनों से हारने की बात रखते हैं,
जो कहाँ तक उचित है,
हा ! हाय ! जहाँ मछली मछली की दुश्मन है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
मुझे लव यानि ‘कि स्नेह के बीच में मत रखना
शब्द ‘मतलब’ कहता है
हो तुम उसके दिल के
दे…वता
हो करके बेकरार,
तभी खोज र…हा, हा…र
न प्रीत लजाना
देखो जीत न जाना
सीखो,
डोर ‘कि टूटे खींचो
मेरे पैर जवाब दे रहे हैं
मेरे मतलब अपने
कभी, जबाब नहीं देते हैं
यदि दे रहे हैं,
तो समझो हुई हद
अब बहुत हुआ
छोड़ो भी जिद
छोटी छोटी मछलिंयों के लिये भोजन बना रही है
छली…मछली
ना…ना
मोटी मोटी मछलिंयों के लिये भोजन बना रही है
भली… ‘म’… छली
मीठे के ऊपर मीठा
मीठे के ऊपर मीठा
मीठे के ऊपर मीठा
अपनों का चाहना
तभी लगता सा कभी-कभी फीका
पर है अनूठा
औरों का चाहना,
हा ! हाय ! प्रायशः झूठा
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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