loader image
Close
  • Home
  • About
  • Contact
  • Home
  • About
  • Contact
Facebook Instagram

जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -267

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
अध्यात्म कुछ समझ में सा नहीं आता है
जब हम कर्म रज से युक्त हैं
तब विशुद्ध, मुक्त, सदाशिव मानना तो,
एक प्रकार से खुद के लिये ठगना ही हुआ ना
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
सुनो बचपन में जब हमारे आँसू थम नहीं रहे थे,
चूँकि हम धम्म से गिर पड़े थे,
चलना जो ठीक से नहीं आता था,
बल घुटनों के जो चलते थे
तब माँ के द्वारा कहने पर
‘के राजा बेटा
मतलब वन-वन चन्दन वन जैसा
तू तो सभी बेटों के बीच राजा बेटा है
क्यूँ मुँह फुलाये बैठा है
बस इतना सुना नहीं
‘के झाड़ पौंछ के उठ जाते थे हम
देखो,
किसी महिला को पुलिस बनाया गया हो
तब उसको अबला न कहा गया होगा,
तब कहीं जा करके,
कह पाई होगी वह
‘के आ…बला
छटी का दूध याद दिलाएँ तुझे
गाय वैसे ही सीधी साधी
मुण्डी हो तब तो दयावतार
लेकिन महिला पुलिस चण्डी से मेल खाती है
तब उसके ‘बाला’
यानि ‘कि कान न कट चले भार से
ऐसी हल्की फुल्की आदि सार्थ नाम गौण करके दबंग कहा गया
अर्धांग तो याद शेष
पति और बच्चों को ड्यूटी पर
तिलांजली देकर आईये

और दोपहर-दुपहर जैसे,
वैसे ही दुबला, दो…बला
अनेकान्त से

सो खोया आपा यदि घर वापिस लौटा है
तो होने पर भी संंगी साथी क्रुद्ध, रुद्र
स्वयं को मानने में शुद्ध, बुद्ध क्या घाटा है

हाँ…हाँ
क्या नुकसान है,
आत्मा निष्पाप मानने में, नफा ही नफा
यदि आगे से होने पाप जो होते हैं रफा-दफा
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

Sharing is caring!

  • Facebook
  • Twitter
  • LinkedIn
  • Email
  • Print

Leave A Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

*


© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point

© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point