सवाल
आचार्य भगवन् !
किसी किसी को देखते की चिड़ सी छूटती है
फूटी आंख भी सुहाता नहीं कोई कोई
क्या सोच रखूँ
‘कि सारे लोग अच्छे लगने लगें
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनो,
‘सत्वेषु मैत्रीं’ बाड़ी है
अहिंसा के जैसे
किसी को देेख चिढ़ आने लगे,
तो आगे की पंक्ति पढ़,
गुणों पर दृष्टिपात करना
और स्नेह बरकरार रखना
यदि गुणों से दरिद्र है वह व्यक्ति,
तो दया का पात्र समझकर
उसे अपने जीवन से मत निकालता
आपके सिवाय कोई भी नहीं,
उस बेली के लिए,
पनाह देकर के,
करना नाम सार्थक अपना वि…रख
फिर भी वह बाज न आये,
बन चाले जो कमठ
तो पार्श्व से कर्मठ बनना,
और प्रथम देव श्रोता कमठ ही है,
पार्श्वनाथ का,
यह बात मत भुलाना
ये मुमकिन ही नहीं हम कर सके सम्मान
हर दिल अजीज
नाचीज
हर एक चीज का
हम न करें अपमान
नामुमकिन भी नहीं
गिरा इन…सां न तपाक से कह देना
जर्रा गिरेवान झाँक ‘अपना लेना’
मतलब बनती कोशिश उसे अपना लेना
अर्थात् भली बुरी लगती है,
खरीदने से पहले चीज
खरीदने के बाद कड़वी हो भले,
मिसरी घुरी लगती है
सामने वाले के अपना लो,
अपना बना लो,
चिक नहीं छूटेगी,
स्नेह उमड़ेगा
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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