सवाल
आचार्य भगवन् !
सभी सलीके से कामकाज कहाँ करते हैं
मन करता है,
इन्हें टोक दूँ
कहाँ तक अच्छा है,
किसी की गलतिंयाँ देखना
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
कोई दूध का धुला कहाँ,
भूल का पुतला जहां
हा !
रखते सभी हाजिर जवाब टोकन
रोक…न
किसी को कभी टोक…न
दूसरों के छिद्र मुरलरिया से
उनसे लेना देना क्या हमें,
अपने छिद्र अपनी पनडुबिया न दे डुबा
बचना
न आना इनके झाँसे में,
सुनते हैं,
देखना, ताँकना, एक झलकाना भी होता है
सार्थ नाम ‘आई’…ना
क्या आदर्श बनने का सपना नहीं है
देख के भी न देखना
जीव होकर के अजीव वत्
अजीबो-गरीब नहीं कह रहा हूँ
आसान ही है वो तो
अपनों के मुख से प्रशंसा पुल बाँधते वक्त अनायास ही निकल आता है
‘यार ! अजीबो-गरीब हो तुम तो’
कॉलर उठ चलती है हमारी,
सीना छप्पन को पार कर चलता है
पर कोई अजीव कह चले,
ऐसी प्रार्थना भगवान् से,
कोई विरला ही करता होगा
उस विरले व्यक्तित्व की कतार में
भले पीछे से गिना जा सकूँ
ऐसी मेरी अरजी
लो लगा भगवान्
सम्यक् दृष्टि ऐसी विनती
तीन संध्याओं में ही नहीं, पल-पल करता है
आदर्श कोई टेढ़ी खीर नहीं
है आसान ही
आईने का ही पर्यायवाची नाम है
चलो झलकायें
और ज्ञानी श्रुत के…बल कहायें
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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