सवाल
आचार्य भगवन् !
आजकल रेडीमेड का जमाना
खूूब हवा खा रहा है, कहाँ तक उचित है ये ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
वैसे आता ही नहीं पसंद रेडीमेड
मानस के लिये
पर दिल जो दे चुके होते हैं हम,
आलस के लिये
खुद ही कह रहा है
‘मेड’
और ऐसे वैसे नहीं रेडी रहने वाले,
यानि ‘कि और फजीती
और पता है, भले 72 पुरुषों की,
64 स्त्रियों की हो
पर बिना अभ्यास के,
खुद ही कह रहा है शब्द
क…ला पलटते ही लॉ…क हो जाती हूँ मैं
फिर जायका अपने हाथों का,
यह पूछ के
‘के जाय…का नौ दो ग्यारह हो जाता है
लेकिन हा ! हाय !
हम टैस्ट देने से डरते जो है
और टेस्ट, टैस्ट लेते ही लेते हैं
और स्वाद सुआ…द
यानि ‘कि धी सुआ-तोते की बुद्धि
द यानि ‘कि देने वाला
हाँ…हाँ.. चल तो रही नजूमी तोते की,
लेकिन है तुक्का ही,
तुरुप का इक्का न बन सकी
तभी…अभी
पिंजरे से आना जाना लगा हुआ है
पिंजरा खुला भी मिला,
तो भी नहीं सुध ले रहे हैं
गनीमत है चोंच से पिंजरे का दरवाजा,
अन्दर जाने की खातिर नहीं खोल रहे हैं
सुनते हैं,
अपने हाथ की बनी रोटी जली भी
कम लजीज न ‘जि,
आगे लगती जलेबी भी नहीं
दो की जगह नौ कर चलते गप्प
सो गप्प न हाँक,
चलते राखते नाक
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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