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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -222

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
सुनते हैं,
कहती है, सफलता तू सफल था
और चूँकि सफल था,
तो रास्ता जो देख लिया है, तो सफल है
और अब जब सफल है, तब सहज ही कल भी सफल रहेगा ऐसी वह छटी सी सफलता,
मुझसे कटी-कटी सी क्यों रहती है
ऐसा क्या करूँ
‘कि सफलता से गठजोड़ हो सके
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
छूने आसमान
पंछी, हर सुबह भरता है उड़ान
पास, थोड़े ही आकाश
जमीं पर आ जाता है,
लिये आश ये विश्वास
के आज को तजुर्बा
और बुजुर्गों की दुआ
लेकर
होकर भाव विभोर
भोर-भोर
फिरके उड़ान भरूँगा
और आसमान छू लूँगा
श्याम…लोगों ने कहा
लौट आया फिर के
राम… लोगों ने
लूट लाया फिर के
वैभव-अनुभव
एक पर और मार
सर उठा,
उठा नजर
नजारे देख आया विरले

यूँ ही न चलने लगता
वक्त खराब
किया जाता है जनाब,
बेमतलब बेहिसाब

देखो,
खूब छकाता हर आविष्कार,
बखूब भाव खाता
आख़िरकार,
डाल ही देता अपने हथियार
हर बार जीता मानौ ही
मानो भी

ल…ता
ता…ल
ताल से ताल मिला के
झुक झूम रही
आशमाँ में आ के
काबिले तारीफ जज्बा-ए-लता
तभी तो पीछे लगाये सफलता
दीवाल पे चढ़
बढ़
दीवाल से गर्दन अपनी कुछ ऊपर उठा के
झुक झूम रही
आशमाँ में आ के

मेढ़ा
दो डग पीछे आ के
दोगुण ताकत ला के
जा भिड़े फिर के
‘कि डर के
क्या मिलने वाला
डर के अलावा
आ लड़ते डट के
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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