सवाल
आचार्य भगवन् !
ऐसी वैसी नहीं, हिन्दी सवा शेर,
हिन्दी की लाईन
( लॉयन ) इंग्लिश का शेर
जो बब्बर है
वो बरोब्बर है
हहा ! ‘अंगरे’ जी
छूना तो दूर, न देखना जी
‘ही’ न The
मतलब ‘भी’ यानि ‘कि
अनेकान्त की पक्षधर है हिन्दी,
ऐसी उस हिन्दी के माथे की बिन्दी से,
ये तीन शब्द माँ, महात्मा, परमात्मा
सुनते हैं, आपको बड़े प्यारे हैं
ऐसी इनमें क्या बात है ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
कहता महोत्सव
माँ, महात्मा, परमात्मा
हो तो सब,
जीवन माँ, महात्मा, परमात्मा बिना
भाँत नरक रौरव
माँ, महात्मा, परमात्मा गौरव
दिल मुट्ठी भर छोटा सा ही
पर उसमें
सारा जहां रखते हैं
माँ, महात्मा, परमात्मा
थोड़ा सा भी ध्यान अपना कहाँ रखते हैं
माँ, महात्मा, परमात्मा
न पकड़ाते हाथ
और न ही आते चले साथ
बखूब
जानते खूब
‘कि बच्चे दुध-मुँहे
रखते ही कूबत
कितनी सुमत
माँ, महात्मा, परमात्मा
पकड़ते हाथ
और ले चालते साथ
माँ, महात्मा, परमात्मा
माँगने पर देते आते
न माँगने पर, देते जाते
देते जाते
देते जाते
ज्यादा कुछ कहाँ लेते हैं
माँ, महात्मा, परमात्मा
अय ! नादां बस अपनों का दिल रख लेते हैं
जैसे ही देखते
‘के बिछे राहों में काँटे हैं
माँ, महात्मा, परमात्मा
झट से बच्चों को अपनी गोद में उठाते हैं
देखो,
एक नाचीज सा
सुबह मुस्कुरा साँझ झर जाने वाला फूल भी
कहलाया सूरज…मुख
माँ, महात्मा, परमात्मा
इनका बनना यदि खास प्रमुख
तो करना पड़ता है न ज्यादा कुछ
बस इन्हें देखना पड़ता है एक-टक
अरुक, अथक
अहम् का मत कराना भोजन
भो…ज
न यानि ‘कि नहीं
अक्षर रखो दूसरा
भो…क नहीं
भो…ख नहीं-नहीं सार्थक
भो…ग
हॉं…हॉं…
भोग लगाना
माँ, महात्मा, परमात्मा को अर्हम् का
माँ, महात्मा, परमात्मा
खिलाते बाद,
बिठाते थाम हाथ
पहले गोद
वो भी समोद
बताए सच्ची बात
कोई न माँ, महात्मा, परमात्मा भाँत
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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