सवाल
आचार्य भगवन् !
नाम सार्थ सा जमा…ना
एक भाई की खुशी,
दूसरे भाई को दुखी कर जाती है
लोग-बाग शूद्र जल नहीं पीते हैं
पर हृदय उनके,
आमूल-चूल जलन से रहते तीते हैं
कुढ़न, डाह, ईर्ष्या,
इन्सां के पर्यायवाची से हो चले हैं
शायद तभी ‘जान…वर’
बाजी मार कर ले गये हो होंगे
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
लाठी पर टूट पड़ते हम
‘कर’ कर भूस-भूषण सा भरम
और सच्चाई कठ-पुतली सा हमें,
अपनी अंगुलियों पर नचाई मुआ ये करम
सुन सवा शेर बन चुके,
आ बनते शेर सखे !
किरदार
इतर पतवार
और खर-पतवार
जो डुबो देती न ‘कि खेती
स्वयम्
कुछ-कुछ कहता सा करम
केमरा लगा
साधे स्वारथ जहां
यहाँ
अपना कोई न सगा
सो, सो ना
रात दिन छिन-छिन खुद को जगा
सुनो
बनकर
अध…बुत करना पड़ता उलांघ हद
काफी कुछ इग्नोर
तब जाके खरखटाता डोर अद्भुत’
के’शर
ऐसा वैसा नहीं शेर बब्बर
चाहिये,
चाहिए अगर, खुशबू किरतार से
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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