सवाल
आचार्य भगवन् !
जब भगवान् के पास अक्षय भंडार है
तो भक्तों को देने में आना कानी क्यों करते हैं
माना मन्दिर के बाहर लगी कतार बदनसीबों की है,
उन्हें देख लेंगे हम लोग,
चूँकि अन्दर लगी कतार देख, लगी है वह कतार
पर हम करीबियों का तो पूरा-पूरा हक बनता है भगवान् आपकी रहमत पर
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
यहीं तो मैं कह रहा हूँ
अन्दर लगी कतार,
बाहर लगी कतार देख ले
और अपने आंसूओं को पोंछ ले
और कहे अपने आप से
भाई क्यूँ सोच रहे हो
कम मिला है
अय ! कलजुगी अवतार
न कोई ऊपर वाला
सिवाय किया हुआ
अपना ही कर्म गोरा काला
अपनी हैसियत से कुछ ज्यादा ही मिल चला है
जश्न मना लो
‘हाथ अपने’
बिगड़ा प्रश्न बना लो
कुछ कम मिला है, ताउम्र क्या ढ़ोना
सर माथ अपने ये भार
यहाँ खाई
बढ़ती वहाँ चढ़ाई
मोक्ष पथ गिर
मत गिर नजरों से अपनी,
क्योंकि फिर एक न चलनी,
देने पर भी
नेक सफाई
‘रे मान भाई
‘रे माँ न भाई ?
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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