सवाल
आचार्य भगवन् !
बचाते-बचाते ही दामन दागदार
हो चलता है
आजकल हवा ही कुछ ऐसी चल रही है
काजल की कोठरी से
सुरक्षित निकलने का उपाय सुझाईये
भगवन्, ‘के छन्नी हो चले भले,
पर दामन मे एक भी दाग न लगने पाये
सुनते हैं,
कारो का कोरा भी उतारा जाता चोला
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
देखिए,
स्वयं ही शब्द काजल में जवाब छिपा है
पूछकर के देख लीजिये
बस कुछ ऐसा जमाईये अपने शब्दों को
सुरक्षित निकलने का उपाय कोठरी ‘का ? जल’
अर्थात् आँखों में जल लाईये
पानी बचाइये
और कम नहीं शब्द दामन
राज बहुत कुछ खोलता दामन
खुद-ब-खुद बोलता
दूर-दूर पढ़िए
‘के न हो चले
द…म…न
दा ! मन
दाम…ना
टकिए चाँद सितार
नेकिंयों के
रहकर के आस-पास मत-हंस विवेकिंयों के
पहुँचने उस पार
सो आओ
दा ! मन
पल्टी खिलाएँ
न…मदा
नम… दा कहाएँ
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
Sharing is caring!