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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -196

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
माँ के लिये प्रथम गुरु मानते हैं
सबसे पवित्र दिन गुरु पूर्णिमा भी कुछ-कुछ
नहीं बहुत-कुछ कहता है
आपके ही मुख से सुना
गुरु पूर्ण-माँ थोड़ा सा खुलासा कीजिए ना
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
एक सुर से
यूँ ही नहीं कहते बच्चे
‘मम’ यानि ‘कि मेरी
‘मी’ यानि ‘कि मेरी

सच्ची, आती की नहीं
मॉं को करना तेरी-मेरी
चींख निकल नहीं पाती है
बच्चे के मुख से
‘के माँ भाग कर आती है किये बग़ैर देरी
सच्ची आती ही नहीं
माँ को करना तेरी-मेरी

हे ! भगवन्
मैं क्या करूँ
‘रत’ निरत
गुहार कई बार मॉं कंगारू
हुई कृपा मॉं गई पा
कुछ-कुछ फैला-फैला
सबसे प्यारा
जग से न्यारा
सत् शिव सुन्दर
एक थैला
उधरता नहीं,
जो फटता नहीं
चलता सालो-साल
‘के शत शरद् जीवेत
उसका नन्हा मुन्ना-लाल
सच…
बेजोड़ी…
मॉं मोरी…

ऐसी वैसी नहीं बन्दर की बन्दो
दुनिया कहती बन्दो माँ,
बेशक चलते वक्त
छीन लिया होगा हर ‘माँ…ने’
अपने बच्चे का हक
परन्तु बन्दो कहती है
दिल जो माँ का रखती है
पीता जा
‘कि पी ताजा ताजा
तलक जब न जाये छक
सच…
बेजोड़ी…
मॉं मोरी…

खूब
बखूब
योग
माँ परिन्दा
योगा क्लासेस बिना भी
बस उसका चूजा, आने मचल रहा हो जमीं
‘रे मन,
बतला तो,
एक बात जर्रा सी
साध सकता है तू,
देर कितनी आसन-कुर्सी
वो देख
घण्टों-घण्टों बैठी अपने पंजों पे
न’कि अण्डों पे
न सिर्फ चिड़िया
न बस गौरेय्या
हर परिन्दे मैय्या
वाह वाह भैय्या
वाह वाह
सच…
बेजोड़ी…
मॉं मोरी…

अक्षर भले ‘सिख’लाते श्री गुरु
पर बच्चे राते ही माँ,
रो ‘Row’ लगाती है स्वरों की
आ ऽऽऽ
ई ऽऽऽ
ऊ ऽऽऽ
ए ऽऽऽ
और क्या तभी तो माँ, गुरु-पुरु
आ बने जितनी
माँ को सेवा करते शुरु
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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