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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -185

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
आज रात मैंने एक सपना देखा
‘के आप अपने कानों को बार-बार पकड़ रहे हैं
बार-बार अपनी गर्दन को मना करने की
मुद्रा में हिला रहे हैं
भगवन् क्या राज था छुपा उसमें
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
भाई !
सिर्फ़ रेखा ‘गज’ नहीं
चरण,
शरण पाई
रज-रज रेखा है
न सिर्फ़ अभिलेखा है
अनुभूत हैं, कई बार देखा है
न सिर्फ लकी’ रे
‘लकीरें’ जाती छोड़, पैरों में लगी रज धीरे-धीरे
फिर उलझो
सुलझो…
क्यों ना, अच्छा है
रज लगे ‘कि समझो
और हाँ…
इतना आसान नहीं
चरण आदर्श बनाना
खूब बखूब
घिसना पड़ता है
जब दर्शन योग्य दर्पण बन चले चरण तब
रज से बचाना पड़ता है,
वरना
खरोंच खाये दर्पण से
क्या काम बनना है
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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