सवाल
आचार्य भगवन् !
आपके प्रवचनों में घना-घना
सुनने में आता है
‘सबसे भली चुप’
‘तोल मोल के बोल’
समां मौन, ‘न तीन भौन’
स्वामिन् ! क्या इतना कीमती है
चुप रहना ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
देखिए,
‘अमा’ यानि ‘कि जहाँ नहीं माँ
पूर्णमा यानि ‘कि कहाँ नहीं माँ
पर ये माँ है कौन
बतलाता शब्द मौन
म… औ… न
सो ज्यादा नहीं
छह पल भी मौन पालो और पा लो क्षमा
सच,
लव-लेश भी रखने वाला होश
जरूर करता है,
बड़-बोला बनके के बाद अफसोस
‘रे मनुआ क्यूॅं
तू ऐसा वैसा बोल आता है
कानों से रास्ता सीधा दिल तक जाता है
‘नेक-दिल’ यानि ‘कि मोम सम
मॉम सम
पत्थर दिल तो कम,
अंगुलिंयाँ ज्यादा
अय नादां !
सो…सौ बार सोचो,
तब कहीं जाकर के
एक बार बोलते वक्त भी संकोचो
बोल…
फिरके हाथ में न आने की बोल
लेते रुखसत
सत् शत प्रतिशत ‘सबसे भली चुप’
बोलने के बाद,
पीछे छोड़िये, पीछे
लगे हाथ
अफसोस लगे हाथ
सच्ची
सौ फीसदी सच्ची बात
‘सबसे भली चुप’
जोश ए जुवान बोलती हूँ मैं,
तभी तो दुनिया जवान बोलती हमें,
जो वान, शान, आन रखनी तो
‘सबसे भली चुप’
न खरी खोटी ही
बात छोटी भी
लग जाती है,
खाई ठोकर ‘सिख’लाती है
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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