सवाल
आचार्य भगवन् !
बड़ा सा साफा सिर पर रक्खे,
काँधे तक झूलती बालिंयाँ कानों में,
हाथ में स्वर्ण कड़े, पर दिल नरम लोग,
जो राजस्थानी हैं,
उनके मुख से खूब
सुनने के लिये मिल जाता है,
‘कि भक्ति देखना है तो,
विद्याधर की देखो,
गुरु ज्ञान सागर जी के प्रति
तो भगवन् !
भक्त के बारे में कुछ बतलाईये ना ।
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
अरे ! आप कैसे बुन्देलखण्डी हैं
अपनी भाषा में पढ़िये तो,
शब्द भक्त
हाँ…हाँ…
भगत
सुनिये,
आप लोगों के मुख कमल से ही सुना है,
‘के ‘लपकी गाय गुलेंदे खाय,
बेर-बेर महुआ तरे जाय’
लीजिये थोड़ा सा तुकबंदी के साथ सुनिये
मेरे भगवन् के सिवा
किसी और के लिये
जिसके पास कम वक्त है
एक वही भक्त है
मेरे भगवन् के सिवा,
न और कोई भी मेरा
ये रट जिसकी रग-रग में
बन के बहता रक्त है
एक वही भक्त है
मेरे भगवन् के सिवा
और कहीं जिसका मनवा
न हुआ आसक्त है
एक वही भक्त है,
एक वही भक्त है,
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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