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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -166

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
जब कभी आपके मुख कमल से,
पुलकित मन से,
अर्जुन से पहले
एकलव्य की, प्रसंशा सुर-लहरी,
सुनने मिल जाती है
भगवन् क्या कोई विशेष बात है,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
धनुर्विद्या ही क्यों न सिखलाई जाये
विद्यालय का नाम अर्जुन रखने से पहले,
एकलव्य रखने की सलाह देंगे
स्वयम् द्रोणाचार्य भी
एक लक्ष्य रखने वाला जो है, एकलव्य
एक भी लम्हा,
फिजूल-खर्च न करने वाला जो हैं एकलव्य
एकल व्यक्तित्व जो है एकलव्य
ए ! मनुआ कल भी कभी आता है,
ऐसी सोच रखने वाला जो है, एकलव्य
‘एक’ मतलब आत्मा,
और ‘लव्’ मतलब ढ़ाई आखर प्रेम के,
ये दोनों एक ही हैं,
ऐसा कहने वाला जो है, एकलव्य

अर…जन
अर्जुन, अर्जन करने में लगे
यह कहकर ‘के खुद-ब-खुद शब्द अर्जन कहे
अरज…न सखे
पर अय ! सुधी
एक और एक हमेशा न ग्यारह ही
देखो
नवजात घास ‘के काँधे चढ़
बस ओंस की बूँद को गर्दन से कहना बढ़
बड़ा आसान ही
‘छूना आकाश’
वैसे आसाँ नहीं
जां…बाज़
बादलों को चीर बाज,
साँझ साँझ लौटा निराश तलक आज

आजकल
पल-पल
मन… चले गुरु
थे कल
प्रति…मा से
सुदूर दूर मन,
तन से भी निश्चल गुरु,
तब निकलते थे नेक भव्य
एकलव्य
सच था करने योग्य नाज कल

गुरु
गो…रु…प
गुरु जी को देख-देख सीखें हम
वक्तव्य एकलव्य
गुरु जी सिखाये तो प्रायः सीखें कम

एकलव्य खुली चुनौती
शिक्षकों को
के आचरण पाला
‘सिख’लाता
न ‘कि वरण माला

शुभ मुहुरत
गुरु मूरत
अनूठा
एक ही
हाथ में
अँगुली तो, अगली भी
उसे मँगाया, आचार्य द्रोण ने
‘के खरगोश सा अलसाया,
सिरहाना कर मील का पत्थर
पा घनी बरगदी छाया
अजीज उनका अपना हमसाया
एकलव्य
मंजिल तरफी लगे
लगे हाथ दौड़ने
और पूर्ण नहीं
अंगूठे ‘पाँव’
साधे संधान
सत् साधो महान…
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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