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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -161

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
फिरोजाबाद में आपका जो ‘अतिथि’ के ऊपर प्रवचन हुआ था,
जब चाहे तब, हवा खा जाता हैं
जिसकी खुशबू दूर-दूर तक चली आती है,
अद्‌भुत ही है वो प्रसंग,
कैसे घटित हुआ था,
भगवन् ! वह,
कुछ विशेष बात थी क्या ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
हाँ…
यहाँ पर जुड़ा था, कुछ ऐसा संजोग,
‘कि पंडित जी साहब, प्रवचन के बाद
कह दिया करते थे,
‘कि कल फलाने-फलाने,
विषय पर प्रवचन होंगे
मैं भी पंडित जी साहब की लाज रख लेता था,
और दूसरे दिन उसी विषय को लेकर,
अपनी बात रख देता था
धीरे-धीरे कुछ दिन हो चले
एक दिन पंडित जी साहब ने कहा,
कल अतिथि पर प्रवचन होंगे,
सारा फिरोजाबाद वादा करे,
‘कि समय पर उपस्थित होकर,
कर्णांजुली से अमृत पान करेगा,
बस ये वादा शब्द
मेरे कर्णांजुल से सीधे हृदय में जा घसा,
क्या दोपहर, क्या सांझ, क्या सुबह,
सामायिक भर ‘फिरो…जा…बादा’
मेरे ज़ेहन में आता रहा,
बाद तो गुम हो चला,
वादा शब्द कहने लगा,
आगम ज्यादा दिन रहने की अनुमति नहीं देता ‘रमता जोगी… बहता पानी’
चलो…चलो चलते-फिरते नजर आओ
वादा करके आये हो देव शास्त्र गुरुदेव से
फिर ?
क्या फिर,
मैंने सुबह की बेला में, बगैर ही आहार के,
तड़के ही,
विहार कर दिया,
पंडित जी साहब बोले,
भगवन् !
बिना बताए ही, चल दिए,
तो मैंने उनसे कहा,
पंडित जी साहब !
आपने ही कहा था
‘के अतिथि पर होंगे प्रवचन,
सो आज तक थ्योरी में दिए थे प्रवचन,
बस इतना अलग समझिये,
‘के आज प्रवचन प्रेकट्रीकली हो चले हैं,
प्रवचन दिया आज का मेरा पंडित जी साहब !
बतलाईये कैसा लगा आपको,
वैसे है न सिर्फ आगम सम्मत ही,
सम्मत सन्मत भी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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