सवाल
आचार्य भगवन् !
जाने क्या पुण्य संजोकर लाये हैं,
ये शब्द,
‘के आप सुन तो रहे हैं ना, कहिये ‘हओ’
आपके प्रवचनों में, बीच-बीच में आकर
नई स्फूर्ति सी देने का काम करते हैं
लोगों के चेहरे पर,
एक अद्भुत सी मुस्कान लाने का श्रेय,
इन्हीं की झोली में जाता है
और लोगबाग भी कान लगाये रहते हैं,
‘के कब आप ऐसा बोलेंगे
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
देखिये,
सारा शहर
निद्रा देवी की गोद में सोया हुआ है,
मीठे-मीठे अपने सपनों में खोया हुआ है
तभी अंधेरी रातों में,
एक लाटी की अनोखी सरगम छेड़ता हुआ,
गस्त देने वाला सिपाही,
बोलता रहता है,
जागते रहो… जागते रहो… जागते रहो…
मैं तो एक ही बार बोलता हूॅं,
बतलाईये, कौन सुन रहा होता है तब,
किससे कहता है ?
क्यूॅं कहिए, क्या आप को पता है ?
चोरों से कहता होता तो
जोरों से क्यों कहता,
चोरों को चौकन्ना थोड़े ही करना है,
हाँ… हाँ…
स्वयं चौकन्ना रहना है,
और नींद के झोंके,
जो मौके देख रहे हैं,
उनसे नो एंट्री कहना है,
बस यही सोचकर मैं भी,
अपने आप से पूछता रहता हूँ,
‘आप सुन हो रहे है ना’
चूँकि ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’
लेकिन सच्चा उपदेशक
उप यानि ‘कि समीप रहता है
देशना यानि ‘कि अपने वक्तव्य के,
क्योंकि लोग सुन के कम सीखते हैं,
देख के ज्यादातर सीखते हैं,
सो अपना अंतरंग टटोलता रहता हूँ
‘के मैं कितने पानी में हूँ
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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