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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -155

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
जहाँ सारी दुनिया पक्ष लगाकर आसमान
छूने के लिये उत्सुक है,
वहाँ आपने अपने एक अनन्य शिष्य का नाम
जो नगर पनागर के गौरव हैं,
निष्पक्ष रखा,
क्या इन्हें आप शीर्ष पर पहुँचना नहीं चाहते
जमींदार ही बनाये रखना चाहते हैं
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
कोई
जहाँ दोई
क्षेत्र…अतिशय पाना…गर तो
सिर्फ पनागर
असंभव संभव हुआ
यहाँ
अनुराग निष्पृह हुआ
और तो और मौन निर्भ्रांत हुआ
रखते ही जुबाँ
मंत्र-
“ॐ ह्रीं जगत् छान्ति-कराय श्री शान्ति-नाथाय नमः सर्वोपद्रव शान्तिं कुरु कुरु स्वाहा”
एक दिन था बैठा मैं
पूज्य बाद बड़े बाबा के पाद-मूल में
तभी दर्शनार्थ एक भव्यात्मा आया
मेरे भीतरी पटल पर,
एक अद्‌भुत सा आलोक छाया
वो गठीले बदन बाला नौजनाँ
झुकता गया, झुकता गया, झुकता गया
दी उसने फरसी ढ़ोक,
मैंने उसका नाम पूछा
बताया उसने खजांची आलोक
मैंने कहा,
खजांची होना ही,
लोक खजांची होता भी
बहुत बड़ी बात पर
आप तो आ…लोक खजांची हैं
वैसे ये सारे ही लौकिक खजांची हैं
नाम तो आपका कुछ हटके हैं,
अलौकिक खजांची बनो तो कुछ बात बने
बस इतना सुनना ही था,
‘कि इन्होंने कहा,
भगवन् ! रत्नत्रय खजाने की अभिलाषा रख,
आज से ही अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत
देकर कृतार्थ कीजिए
सो सखे ! मैं तो रह गया स्तब्ध
सुनते ही ये संकल्प शब्द,
बगैर कोई छूट-छाट का अपना पक्ष रखे
दिल का सच्चा,
तभी से ये बच्चा
छा गया था मेरे दिलो-दिमाग पर
पर संजोग जुड़ न पाया
मैं इसे दीक्षित कर न पाया
हाय ! कितना बेवश ‘मानौ’
निर्भर स्व-पर भाग पर
बाद…
अतिशय क्षेत्र रामटेक में हो सकी पूर्ण मुराद
बड़े बाबा के समक्ष
मैंने सहज-निराकुलता के साथ
इसका नाम रख दिया
निष्पक्ष
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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