सवाल
आचार्य भगवन् !
पसीने से लथपथ आपके हाथों में,
क्या कलम नहीं फिसलती है
भगवन् !
क्या आपका कागज,
पापड़ जैसा नम नहीं पड़ जाता है
गले हाथों के रखने से ।
कितनी गर्मी हो रही है
‘फेन’ न सहीं,
जैन तो मैं हूँ
भगवन्, मुझसे थोड़ी सी,
गीली नेपकीन से हवा तो करा लिजिये ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
देखिये,
आपका आप लेखिये
क्या सुदी,
क्या बदी,
सौ फीसदी मैं भी जैन ही
जिसने जय न चाही,
न स्वयं नाचा
न दुनिया नचाई
अँगुलियों के इशारे पर
एक जैन वही
जिसके पैर दल-दल पाप…पड़ रहे
का…गज पापड़ उसके
लथपथ
श्रम श्लथ
नम पड़ रहे
हमारा कागज तो का…गद है
बाल-अगदकार श्रीमद् पूज्य पाद गुरुदेव हाथ से
जो मिला है
और कलम उगले गुल-गुलाबों पर,
श्रम बिन्दु-ओंस का हरेक कण
दैवीय ज्योति-भा
मोती सा विरला है
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
Sharing is caring!