सवाल
आचार्य भगवन् !
जो आजकल,
इतने मँहगे-मँहगे पाण्डाल बनते हैं
लाखों रुपये पानी-से बह जाते हैं
भगवन्, अपव्यय जैसा लगता है
मेरा मन शान्त हो, ऐसा कुछ कीजिये
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनो,
इसे शामियाना भी कहते है
और आपने
अपनी दादी-नानी की किस्सों में सुना होगा
‘लाख टके की बात’
अच्छे से सुन रहे ‘ना’ बातें नहीं,
बातें तो हम करते हैं,
मन के काँधे पर रखते हैं
दुनाली, दागने के लिये
हमें समझना चाहिये
लाख रुपये तो लेगा ही
पते की बात जो बताता है
‘के शाम…आना
‘रे भूल मत जाना
और सुनो कहाँ मिटता है
पैसा सिर्फ
जेब बदलता है
हाँ… लगा-लगा ‘पान, डाल’ पर
जरूर सूख जाता है
है अपव्यय का बाबा यह
पंसारी टूट जाता है
अजि-रण मचाता
ऐसा वैसा नहीं, कहता पलट आखर पा…न
न…पा तुला लो,
तो मैं अजीरण मिटाता
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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