सवाल
आचार्य भगवन् !
गुस्ताखी माफ हो,
भगवन्, मुझे विकल्प उठता है बार-बार,
इसलिये समाधान चाहता हूँ
कोई व्यक्ति अपनी कार के पहिये के नीचे,
साँप को दबा के आ गया,
और आपसे प्रायश्चित माँगा,
आपने छोटा-मोटा जो प्रायश्चित दिया,
वो तो साँप के साथ,
साफ-साफ नाइंसाफी है
गले के बदले गला देने की बात न्याय होती ।।
है ना भगवन् !
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनो तो
लोक में, दो किस्म के लोग हैं
प्रायश्चित लेने आये हुये लोग ‘दूसरे’ हैं
जो मुझसे प्रायश्चित लेने नहीं आये हैं
बल्कि आज से,
ऐसे जां-लेवा वाहनों की सवारी की
त्याग करने आये हैं
वैसे इन्होंनें जान बूझ कर
जान विषधर, नहीं ली है
देखो आँख गीली है
बड़भागी
‘जैन हर-जन’ संकल्पी हिंसा का पूर्ण त्यागी
बस धोखा हुआ है
इसलिये इन्हें एक मौका दिया है
फिर-के संभल चलने का
चूँकि संसार-जल…
काई, तो कहीं दलदल
फिर अवसर आ पड़ेगा फिसलने का
और ये भव मानव
असंयम के साथ
क्रूर से क्रूर पशु की पशुता को भी देता मात
सो इनपे न उठा अंगुली
एक और किस्म अगली
सो जानकी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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