सवाल
आचार्य भगवन् !
आपके पीछे-पीछे भागने वाली,
भीड़ का हिस्सा हूँ ।
हर रोज,
सुबह-सुबह,
आपके साथ चलता हूँ
भगवन् ! हर रोज देखता हूँ,
‘के चलते-चलते, थोड़ी देर के लिए,
भक्तों का सारा हुजूम,
वगैर बिल्ली के रास्ता काटे हुए
आपके समान ही टकटकी लगाकर,
सूरज के लिए निहारने लगता है ।
जाने ऐसा क्या पुण्य है, सूरज का
हम सब दुनिया वाले आपको देखने आते हैं,
और आप हम सभी को साथ लिए,
सूरज से मिलने निकलते हैं,
ऐसी कौन सी, खास बात हैं,
सूर्य बिम्ब में प्रभो कृपया बतलाईये
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
पुरु मुख से कहा गया
गुरु मुख न रहा गया
किस ‘किससे’ छुपा
पन्ने-पन्ने छपा
सूर्य-बिम्ब में
अकृत्रिम जिन-बिम्ब हैं
चक्री भरत
था जिनका परम भगत
सही
मैं बगुला भगत ही
बन चलूँ उनका, पल-पलक
सो लगाकर टकटकी पाऊँ झलक
और सुनते है,
बाल-भान
आँखों के लिए वरदान
‘के बिन वैशाखी, दिखा पाऊँ करिश्मा
सो निहारूँ आसमाँ
चूँकि राखना नाक
और नाक से ही जो चश्मा
करता रहता है चार आँख
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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