सवाल
आचार्य भगवन् !
चतुर्थ काल में भक्ति काम करती थी,
आज तो पैसे की शक्ति काम करती है,
शबरिंयाँ अपने राम की,
राह ही देखती रह जाती हैं आज ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
जवाब…
लाजवाब
सुनो,
बनो तो शबरी,
राम राज्य में
अंगूठे को कनिष्ठा के बाद
एक करने पर भी दिन-रात
न मिली दूसरी
तभी से
नाम करण हुआ ‘अनामिका’
हर कोई न पढ़ा-लिखा
दूसरे विद्यालय की दूसरी कक्षा,
रखनी पड़ती शबर
वा-उमर
सुनते हैं,
कभी ये कहने ना आई
‘के राम तुमने अपनी शबरी भुलाई
भाई सम्प्रेषण भी तो कोई चीज
खिंचा चला आयेगा
राम तुम्हारा
रोजना
न सिर्फ त्यौहार-तीज
हाँ…हाँ… बाद सबूरी
पहले श्रद्धा जरूरी
लिक्खा न देखा
‘श्रद्धा सबूरी’
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः
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