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चुन'री लाडो ओढ़नी

चुन’री लाडो ओढ़नी-;81से90

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

(८१)

‘मुझसे हाई… को ?’

*रखना ला…ज
ज…ला दें ना
बहना
अंगारे नैना*

‘मेरे साथ क…वीता’

*थाती
कवि-कोविद् परिपाटी
नैना झील-से
वैसे भरे कीच से
वो तो पलकें हैं
जो आ जा ‘पल के लिये, नहलातीं
वरना सारी पोल खुल जाती
यदि झूठ सफेद हो
तो जाग सुबहो
क्यों उगलतीं गीड़
लगा भीड़
‘री चिरैय्या भला अपना नीड़*

‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’

*एक गुरुकुल में
गुरुदेव शिष्यों को समझा रहे थे
पतझड़ के बारे में
‘के पतझड़ कुछ और नहीं
पानी का उतर जाता है
अब सार्थक नाम
पाद…प
पाद मतलब पैरों से
प मतलब पीने वाला
हॉं हॉं…पेड़
उसकी जड़े जो पानी पी करके
पी नहीं जाती हैं
पहुॅंचातीं हैं पत्ते पत्ते तक
लेकिन पानी अब उतना रहा कहाँ
‘के जड़े पत्तों तक भेज सकें
सो पत्ते झड़ चले
मतलब सीधा सीधा है
पत…झर कोई चीज ही नहीं है
इसलिये पानी राखो
कुछ समझे ?

तब एक शिष्या
जिसका नाम सहजो था
वह बोलती है
गुरु जी
पत यानि ‘कि इज्जत
झड़ यानि ‘कि माटी में मिले
‘के उसके बचाने के लिये
पानी मतलब लाज
राखने की बात कर रहे हैं आप
है ना गुरुदेव
तब गुरु जी ने
अपनी कॉलर उठाते हुए
भूरी भूरी प्रशंसा की
सहजो नाम उस बच्ची की*

‘मैं सिख… लाती’

*पानी जो रख रहा है
तभी तो एक फल के लिए
वगैर मान हानि का दावा ठोके
श्री मतलब लक्ष्मी ने अपना नाम
रख लेने दिया है*

(८२)

‘मुझसे हाई… को ?’

*बचने लगा
‘चुन’री’
‘रंग’
कुड़ी,
पै तेरा उड़ा*

‘मेरे साथ क…वीता’

*शब्द रंग में रखी बिन्दु,
बिन्दु न सिर्फ सखी
बल्कि
‘चाँद सितार’
‘के टकते
‘चुन…री
जब तक रगों में
रंग
रगें हुईं क्या रंगहीन
जैसा होता है पानी
‘कि खत्म जिन्दगानी
जिसे बचाने
छार-छार
हो चली चुन’री
न सिर्फ निछार
‘रंग’
सो राखो संग*

‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’

*पिता जी का देहान्त हो गया
बच्चा बाहर की जॉब छोड़ करके
गांव आकर
अपनी पुश्तैनी खेती करने लगा
गर्मी का समय था,
फसल लहलहाई
बड़ा खुश था बच्चा अपनी मेहनत पर
पर हाय ‘री किस्मत
खेत में आग लग चली
सारी की सारी फसल
धू-धू करके जल गई
पता लगाया गया
आग कैसे लगी ?
तो ज्ञात हुआ
बाँसों की रगड़ से आग लगी थी
बस आगा देखा न पीछा
सारे बाँसों के झुरमुट
बरखुरदार ने
अपने हाथों से काट फेंके
और चैन की सांस ली
बरसात आई फसल लाई
बड़ा खुश है बच्चा
फिर आई ठण्डी
अब फसल तो आई अच्छी,
लेकिन तेज ठण्डी हवा चली
जिसे बाँसों के झुरमुट खुद खाकर के
फसल की रक्षा करते थे
चूंकि अब वो नहीं रहे
सो ‘तुष का यार’ जो तुषार
वह लग चला
मतलब पाला पड़ गया
अब बच्चा बड़ा दुखी है
अपनी करनी पर
उसके ताऊ ने कहा
बेटा
गर्मी में बाँसों को बाँध देते हैं
यदि कहो क्यों ?
तो
सर्दियों में बांस साथ देते हैं
सो आगे जानवी*

‘मैं सिख… लाती’

*सिक्के के दोनों पहलू पढ़े बिना
निर्णय लेने पर
बाद में अफ़सोस
के सिवाय कुछ भी
हासिल नहीं होता है*

(८३)

‘मुझसे हाई… को ?’

*पहनावा
दे…बता स्वयम्
कितने
‘पानी’ में हम*

‘मेरे साथ क…वीता’

*न सिर्फ पहनावा
बल्कि यह नावा
लगायेगा तीर
अगर हो चीर
भारतीय ‘लक…’री’
न ‘कि आया विलायती ‘पथ…’री’
यानि ‘कि भारतीय खून पसीने से सना
न ‘कि विलायती मशीनों से बना
मतलब स्वदेशी वस्त्र
लकरी नाव
उप्प यानि ‘कि करें पार
और विदेशी वस्त्र पथरी नाव
डुप्प
हा ! करें गप्प बिन डकार*

‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’

*फल सब्जियों के बीच
एक बार बातचीत निकल पड़ी
‘कि पुरु-देव गुरुदेव सभी तो कहते हैं
‘अपना पानी राखो
बिना पानी सब शून’
पर यह पानी राखे कैसे
तो जो फलों का राजा है
वह बोला
देखो
हम सभी के अन्दर पानी है
भगवान् में उसे राखने के लिए
मोटी से मोटी ओढ़नी उड़ाई है
जितना ज्यादा पानी
इतनी मोटी मोटी ओढ़नी
ककड़ी
कड़ी नाम बस
क…कड़ी हूॅं मैं
ऐसा कहती है
तरबूज को देखो
तरबूज करता है
नारियल को देखो
नारियल में सीधा सीधा पानी जो भरा है
जो हमें बतलाता है
अपना पानी राखना है
तो उतना ढ़क के रखो अपने आप को
तब पानी बचेगा
सभी फलों ने
सब्जियों ने
समर्थन में सिर्फ तालियां ही नहीं दीं
पानी राखने की शपथ भी ली*

‘मैं सिख… लाती’

*अपनी नाक
अपने हाथ*

(८४)

‘मुझसे हाई… को ?’

*पश्चिमी हवा
संभाल
चुनरी
न ले चले उड़ा*

‘मेरे साथ क…वीता’

*ऐसा क्या अप-टू-डेट बनना
‘के डुप्लीकेट बन कर के रह जायें
कई अपन से भले अच्छे हैं
पर जब तक अपन अपने जैसे हैं
तभी तक दिल के सच्चे हैं
दिल के सच्चे वेश-कीमती
बाकी ‘बच्चे’ वेष कीमती
कहाँ खरे
औरों के बांट-बटखरे
जग जाहिर
दाढ़ी मारने में जग माहिर
क्यूॅं न यूॅं कुछ करें
‘के नपे-तुले रहें*

‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’

*मां जिस दूसरी कक्षा में पढ़ी थी
अपनी हवा बच्ची को
उसी हवा समाज के मदरसे में
पढ़ने के लिए भेजती है
जहाँ पढ़ाया गया
इस हवा के लिए
‘कि जीवन है औरों के लिये
हमें बनती कोशिश
हर किसी की मदद करनी चाहिए
हमीं को ले करके
शब्द ‘हवाले’ प्रसिद्ध है
महक को कोने-कोने
काँधे बिठा ले जाने में
अपने पूर्वज सबसे आगे रहे हैं
सुनो अकेली हवा में
कोई नहीं झूमता
खुशबूदार रहे हवा
तो लोगों के मुख से अनायास ही
ह…वा
वा…ह निकले बिना नहीं रहता है
आज बस इतना ही
इतना कहकर गुरुदेव ने मौन ले लिया
फिर बच्ची घर आ पहुंची
पता है
आज रात आतंकवाद का भाषण था
आंधी, बवंडर, तूफान
सभी नेता शामिल हुए थे इसमें

भाषण शुरू हुआ
हमसे शक्तिशाली कोई नहीं है
हमारे बिना
किसी भी जीव का जीवन नहीं है
हम बादलों को धकेल जहाँ चाहे
वहाँ सुभिक्ष और अकाल का कहर
ढ़ा सकते हैं
अग्नि के मिल करके जला सकते हैं
इसलिये
पूरी दुनिया में अंधेरा कायम रहे
ऐसा किल्विष का कहना है
तभी बीच में वह बच्ची
उठ खड़ी हुई
और बोली
क्या आप ने हवा के अक्षर
पलटा करके देखें हैं
वाह कहते हैं वह
और आप तबाह की राह बतला रहे है
तबाह के अक्षर पलटिये अब
हा…वात बन चलेंगे हम सभी
अंधेरा तो अपने आप क़ायम रहता है
हमे दिया जलाना होता है
हम आपके साथ नहीं हैं
भा…रत के निवासी हैं
सभी समाज जन
इस बच्ची के साथ हो चले*

‘मैं सिख… लाती’

*सितारे पैसे प्यारे
क्यूं नकली
बनना बिन्ना*

(८५)

‘मुझसे हाई… को ?’

*या खुदा ! सुने
‘मेरी लाडो
या पर्दा चुने
आमीन*

‘मेरे साथ क…वीता’

*किसका नहीं सपन
छूना गगन
पर हाय !
मानस
कितना बेबश
वैसे
सुनते है,
खोजने से मिल जाता है खुदा भी
होगा, जरूर होगा कोई न कोई
परदा भी
‘पर’ यानि ‘कि पंख
‘द’ यानि ‘कि देने वाला
सच, पर्दा निराला*

‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’

*एक गुरुकुल में इत्र
और डॉट दोनों पढ़ते थे
बड़े अच्छे मित्र थे दोनों
एक दिन गुरु जी ने इत्र को
गांव की भाषा में कहाँ
बड़ा प्यारा नाम है इतर
यानि ‘कि दूसरा
यथा नाम तथा गुण
इतना सुनते ही उसे अहंकार आ गया
और उसने डॉट के साथ दोस्ती तोड़ दी

लेकिन यह क्या ?
जो हवा डॉट की
एयर टाइट कसावट से
आसपास भटकती भी नहीं थी
वह उसे यहाँ वहां
तितर बितर करने लगी
उसने गुरु जी को बुलाया
तो गुरुजी बोले बेटा
तुम्हारा साथी कहाँ है
उसी के साथ देखा था मैंने तुम्हें
तभी मैंने प्रशंसा की थी तुम्हारी
उसके बिना तुम
इतर यानि ‘कि
दूसरे हो
पहली तो डॉट है
उसकी छांव जब तक तुम्हारे ऊपर है
तभी तक तुम इतरा सकते हो
सो उससे दोस्ती कभी मत तोड़ना
इत्र ने अपनी भूल
स्वीकार की
डॉट ने फिर से उससे दोस्ती कर ली*

‘मैं सिख… लाती’

*एक से भले दो*

(८६)

‘मुझसे हाई… को ?’

*ताक में कोन-कोन बैठा
रहना चौकन्ने बेटा*

‘मेरे साथ क…वीता’

*राख
खूब बखूब आता लड़ाना आँख
जरा बचके रहना
न सिर्फ अजनबियों से ही
करीबियों से भी
ओ ! ताकना मत
जो राखना पत
थोड़ा बहुत मुँह मारता
जानवर
किरदार मानौ
बहुत बदबू मारता
सुन ‘री
बहना चुुन’री*

‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’

*एक बिजली का कीड़ा
नव जीवन के नव नव सपने संजोए
आसमान से भूमि पर गिरा
बीच में ही
बिजली के खम्भे के लिए
स्नेह वशात्
फिर फिर के छुये
पर बाहर के काँच की बाधा देख
फिर प्रयास करे छूने का
पर नहीं छू पाया
तभी कहीं से
बन्दर आ चला
बन्दर ने हिलाया खम्भा
मानो कीड़े बिजली के खम्भे
से ही टपक रहे हों
पकड़ने का प्रयास विफल रहा
कीड़ा चकमा देकर भाग चला
लेकिन जाते-जाते
बन्दर का हाथ जो लग चला
इसलिये मुँह के बल गिरा
आंखें बन्द हो चलीं दर्द के मारे
जैसे आंख खली
‘कि छिपकली दिखी ताक में
चिड़िया चोंच खोले मिली
मकड़ी लार रस्सी से उतरती दिखी
उसके पास
तभी बिजली के कीड़े ने
प्रार्थना की
और जोर लगा कर उठा
छिपकली ताकती रह गई
चिड़िया बुद्धि में गुड़िया सिद्ध हुई
मकड़ी नीचे उतर ही नहीं पाई
फिर से कीड़ा बिजली के पास जा पहुंचा
और फिर वही बन्दर का कहर
कब तक बचेगा हा !
बस सहारा भगवान् तिहारा*

‘मैं सिख… लाती’

*जितनी ढ़ाके जाती देह
उतनी नारी विदेह*

(८७)

‘मुझसे हाई… को ?’

*सन्तरा
जब तलक ओढ़नी
न Sun से डरा*

‘मेरे साथ क…वीता’

*अद्‌भुत होती है छाल
ढ़ाल बनके
जो वि-रख
विशेष रूप से
औरों की रक्षा का बीड़ा
सिर पर लिए है
अजनबियों की खातिर ही
सदा जिये है
उनकी रक्षा के लिये
कमर बाँधे खड़ी रहती तैयार
हरस
अपना रस सुखा देती है
‘कि दौड़ सके अमृत
नस-नस दरख़्त
हर वक्त
एक एक झुर्रि पर
अपना नाम लिखा लेती है
सच
दया, क्षमा, करुणा बुत होती है छाल*

‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’

*एक नगर सेठ थे,
बड़ी मुश्किल से एक संतान
उनके यहाँ जन्म ले पाई
पर दुर्भाग्य
उसके जन्म के साथ ही
सेठ जी की अंतिम यात्रा का
समय आ गया
सारी सम्पत्ति का एक वारिस
यह लड़का कभी नवजात ही था
मां को खूब चिंता होने लगी
‘कि इसके शत्रु अब
सारे रिश्ते नातेदार बन गये थे
इस छोटी सी जान की
जान के पीछे
कई षड़यंत्र-कारी पड़े हुये थे
माँ बच्चे को पल भी
अपने आंचल की छाँव से
दूर नहीं करती थी
बच्चा धीरे-धीरे बड़ा हो रहा था
माँ को लगने लगा
अब मैं उसे गोद में नहीं रख पाऊँगी
भागने लगता था वह
जैसे ही पकड़ो
सो उसने एक तरीका खोजा
उसने भगवान् के दरबार में
गिर गाय के अठ पहरी शुद्ध घी का
दीया रक्खा
और घी खत्म होने न पाता
‘के फिर डाल देती थी वह
अब बच्चा उसका
दुश्मनों की काली नजर से बच्चा रहा
और आज यह बालिग बन गया है
सारी सम्पत्ति का बारिस भी
सच अद्भुत होतीं हैं मांएँ*

‘मैं सिख… लाती’

*लाठी न उठा,
अंधेरे को भगाने के लिये
एक दीप जलाना चाहिये*

(८८)

‘मुझसे हाई… को ?’

*चुनेगी कोई मीरा बाबरी
लिप…स्टिक बाँसुरी*

‘मेरे साथ क…वीता’

*ऐसी वैसी नहीं
न किस किसने
‘कही विदिश्-दिश् ने
बा…बड़ी
वाह बड़ी
औरों ने दरवाजा खोल, दिया
इसने दरवाजा खोल दिया
लगा रखी
सो… ‘पान
‘के कर सके, कोई भी आन
सच,
दिया लिया जाये न
उधार
न ही खरीद पाये धन
उदारपन*

‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’

*एक स्कूल में
एक बौद्धिक प्रतियोगिता हुई
प्रतियोगियों के सामने
दो तस्वीर रखीं थीं
हूबहू एक से चित्र थे दोनों
एक महिला का चित्र उकेरा गया था
गुरुजी ने कहा
इस चित्र में कम से कम
पेंसिल का प्रयोग करते हुए
तस्वीर की कीमत बढ़ानी है
किसी ने गुलाब का फूल पकड़ा दिया
तो किसी ने मुस्कान गहरी कर दी
किसी ने भौंहे धनुष जैसी बना दीं
तो किसी ने बालों की लट
चेहरे माथे पर लटका दी
गले में शंखावर्त ला दिये
इस प्रकार जैसे बना
सभी प्रतियोगियों ने
अपना हुनर दिखाया
अब निर्णायकों की बारी थी
उनमें से एक फोटो चुना गया
जब लोगों के सामने
वह फोटो
और बाकी के सभी फोटो रखें गये
सभी ने
उस लाजो नाम की बच्ची की
खूब प्रशंसा की
जिसने उस तस्वीर में
उकेरी महिला के माथे पर
सार्थक बिन्दिया रखी थी बस
और बिन… दीया
रोशनी चमक
उस तस्वीर की बढ़ चली*

‘मैं सिख… लाती’

*चूड़ी
क्यों छोड़ी
चूड़ियाँ
चुड़िया क्षणक
खनक
दिल चुरा रख लें
जहाँ खनखन पैसों की
झाँके बगलें*

(८९)

‘मुझसे हाई… को ?’

*रॅंग
ओढ़नी रंग
‘दी…वाल’
उड़ चली पतंग*

‘मेरे साथ क…वीता’

*बने जैसे
The ‘बाल रंग जमा लेना चाहिए
कैसे ?
दीवा…ला रंग जमा होना चाहिये
अंधकार आप आप अवतार
जैसे खरपतवार
और प्रकाश
साध्य भागीरथ प्रयास
सो चुन’री*

‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’

*एक मेंढ़क बच्ची
अपनी माँ से पूछती है
माँ ये सर्प
अपने कितने समय से दुश्मन हैं
माँ ने बच्ची के मुख पर
अपना हाथ रखकर के कहा
बेटा अपशब्द मुख से नहीं निकालते हैं
कोई अपना दुश्मन नहीं है
हम अपने दुश्मन स्वयं हैं
हम ही असुरक्षित स्थान को चुनते हैं
फिर दूसरों के दोष देते हैं
यह हमारी अपनी ही कमी है
वो तो अपना पेट भरने निकलते हैं
माँ साफ़ साफ़ बतलाओ ना
क्या कहना चाहती हो तुम
मेंढ़क माँ बोली
बेटा यदि हम पानी में रहते हैं
तो सांप हमारा
बाल भी बांका नहीं कर सकते हैं
बस मेंढ़क बच्ची ने
बच्ची नाम सार्थक करने
माँ की बात को गाँठ बाँध लिया
अब नाग-नागिन
मेंढ़क बच्ची का
इंतजार करते-करते
अपना रास्ता नापते
लेकिन क्या मजाल
‘के मेंढ़क बच्ची का मन
पानी से बाहर आने को कहता हो
उसके सब संगी-साथी
काल के गाल में पहुंच चुके है
लेकिन यही एक ‘बच्ची’ है*

‘मैं सिख… लाती’

*संयम बहुत बड़ी चीज है
यम को आगे कभी नहीं आने देता
पीछे ही रहता है यम
शब्द ही कह रहा है सं…यम*

(९०)

‘मुझसे हाई… को ?’

*ओढ़नी आँखों का ओढ़ना
‘री नासा दृष्टि और ना*

‘मेरे साथ क…वीता’

*लाजो !
शगुन
अंगुली उठते उठते ही सकुचाती
सती
‘लाजवन्ती’
सजाती
छुई मुई
सच्ची
छुई
‘के मुई
‘बच्ची’*

‘सुन लीजिए ना, क… हानी ?’

*एक बार
एक स्कूल में
एक प्रतियोगिता रखी गई
शब्दों को कुछ जोड़ तोड़ करके
कीमती से
बेशकीमती बनाना था
एक बच्ची नाम था जिसका सहजो
वह भी प्रतिभागी बनी
उसे शब्द मिला आसमान
पता है प्रथम स्थान मिला उसे
शिक्षका ने बच्चों को बताया
‘के सहजो ने
आसमान का
‘न’ अलग करके
मा के ऊपर चन्द्र-बिन्दु रखकर
शब्द में चार चाँद लगा दिये हैं

‘के आश मतलब
विश्वास योग्य कोई है
तो वह है मॉं
सच
आशमाँ घनी काली चुनरिया ओढ़ता है
तब जाकर के कहीं
मीठी पानी की बरसा कर पाता है
जिसके बिना
जीवन की कल्पना ही नहीं है*

‘मैं सिख… लाती’

*कुछ कुछ कहती सी
वगैर ओढ़नी के
ओर-छोर…नी*

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