- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 941
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर
जय सूरि विद्या सागर
मेरी वन्दना सादर ।।स्थापना।।
लिये रतनार जल गागर
जय सूरि विद्या सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर
जय सूरि विद्या सागर
मेरी वन्दना सादर ।।जलं।।
गन्ध मनहार मलयागिर
जय सूरि विद्या सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर
जय सूरि विद्या सागर
मेरी वन्दना सादर ।।चन्दनं।।
मोति छव शालि धाँ पातर
जय सूरि विद्या सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर
जय सूरि विद्या सागर
मेरी वन्दना सादर ।।अक्षतं।।
पुष्प लर क्यार अलकापुर
जय सूरि विद्या सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर
जय सूरि विद्या सागर
मेरी वन्दना सादर ।।पुष्पं।।
चारु चरु थाल मण झालर
जय सूरि विद्या सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर
जय सूरि विद्या सागर
मेरी वन्दना सादर ।।नैवेद्यं।।
दीप घृत न्यार गैय्या गिर
जय सूरि विद्या सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर
जय सूरि विद्या सागर
मेरी वन्दना सादर ।।दीपं।।
गंध घट माल जग जाहिर
जय सूरि विद्या सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर
जय सूरि विद्या सागर
मेरी वन्दना सादर ।।धूपं।।
सरस फल पार बागा-तर
जय सूरि विद्या सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर
जय सूरि विद्या सागर
मेरी वन्दना सादर ।।फलं।।
द्रव्य शुभ चार मनवाहर
जय सूरि विद्या सागर
वन्दना सादर
मेरी वन्दना सादर
जय सूरि विद्या सागर
मेरी वन्दना सादर ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
ओ ! ले बीड़ा लो,
सँभालने का हमें,
नटखट मैं
जयमाला
विद्याधर !
अनगढ़ पाथर
बिन टोका-टाँकी
मूरत करुणा गढ़ दी
धन ! शिल्प ज्ञान सागर
अनगढ़ पाथर
विद्याधर !
अनगढ़ पाथर
नैन नम
सदे-सदे कदम
वैन सरगम,
नैन नम
गुण रत्नाकर
धन ! शिल्प ज्ञान सागर
विद्याधर !
अनगढ़ पाथर
बिन टोका-टाँकी
मूरत करुणा गढ़ दी
धन ! शिल्प ज्ञान सागर
अनगढ़ पाथर
विद्याधर !
अनगढ़ पाथर
मन सुमन
क्षण क्षण सुमरण
स्वानुभवन
मन सुमन
कल शिव-नागर
धन ! शिल्प ज्ञान सागर
विद्याधर !
अनगढ़ पाथर
बिन टोका-टाँकी
मूरत करुणा गढ़ दी
धन ! शिल्प ज्ञान सागर
अनगढ़ पाथर
विद्याधर !
अनगढ़ पाथर
‘तरु’ हृदय
मुद्रा अभय
सहजो विनय
तर हृदय
सूर प्रभाकर
धन ! शिल्प ज्ञान सागर
विद्याधर !
अनगढ़ पाथर
बिन टोका-टाँकी
मूरत करुणा गढ़ दी
धन ! शिल्प ज्ञान सागर
अनगढ़ पाथर
विद्याधर !
अनगढ़ पाथर
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
याद रख के मेरी
काफी
मुझे दी मुस्कान तेरी
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