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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 844

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 844

कहो,
अहो,
हो कहाँ के
इस जहाँ के,
लगते ही नहीं

तुम रखते ही नहीं,
गैरों में
किसी को पैरो में
रखते ही नहीं
दिल के सिवा
अय ! मेहरवाँ ।।स्थापना।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ,
चढ़ाऊँ क्यूँ न तुम्हें दृग्-जल
छूती ही नहीं तुम्हें वानरी-गहल
कहो,
अहो,
हो कहाँ के
इस जहाँ के,
लगते ही नहीं

तुम रखते ही नहीं, 
गैरों में
किसी को पैरो में
रखते ही नहीं
दिल के सिवा
अय ! मेहरवाँ ।।जलं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ,
चढ़ाऊँ क्यूँ न तुम्हें चन्दन
छोड़ आये दूर कहीं, तुम वन निर्जन क्रन्दन
कहो,
अहो,
हो कहाँ के
इस जहाँ के,
लगते ही नहीं

तुम रखते ही नहीं,
गैरों में
किसी को पैरो में
रखते ही नहीं
दिल के सिवा
अय ! मेहरवाँ ।।चन्दनं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ,
चढ़ाऊँ क्यूँ न तुम्हें अक्षत
होती ही नहीं तुम्हें किसी से नफरत
कहो,
अहो,
हो कहाँ के
इस जहाँ के,
लगते ही नहीं

तुम रखते ही नहीं,
गैरों में
किसी को पैरो में
रखते ही नहीं
दिल के सिवा
अय ! मेहरवाँ ।।अक्षतं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ,
चढ़ाऊँ क्यूँ न तुम्हें पुष्प दिव
तुम निस्पृह जो खे रहे हो नाव शिव
कहो,
अहो,
हो कहाँ के
इस जहाँ के,
लगते ही नहीं

तुम रखते ही नहीं,
गैरों में
किसी को पैरो में
रखते ही नहीं
दिल के सिवा
अय ! मेहरवाँ ।।पुष्पं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ,
चढ़ाऊँ क्यूँ न तुम्हें षट्-रस
जिन्दगी में तुम्हारी है ही नहीं कशमकश
कहो,
अहो,
हो कहाँ के
इस जहाँ के,
लगते ही नहीं

तुम रखते ही नहीं,
गैरों में
किसी को पैरो में
रखते ही नहीं
दिल के सिवा
अय ! मेहरवाँ ।।नैवेद्यं।।

क्यूँ न जगाऊँ
जगाऊँ क्यूँ न तेरा दिया
लेने के नाम पर, हाथों का श्रीफल बस लिया
कहो,
अहो,
हो कहाँ के
इस जहाँ के,
लगते ही नहीं

तुम रखते ही नहीं,
गैरों में
किसी को पैरो में
रखते ही नहीं
दिल के सिवा
अय ! मेहरवाँ ।।दीपं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ,
चढ़ाऊँ क्यूँ न तुम्हें सुगंध अन
होती ही नहीं तुम्हें किसी से जलन
कहो,
अहो,
हो कहाँ के
इस जहाँ के,
लगते ही नहीं

तुम रखते ही नहीं,
गैरों में
किसी को पैरो में
रखते ही नहीं
दिल के सिवा
अय ! मेहरवाँ ।।धूपं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ,
चढ़ाऊँ क्यूँ न तुम्हें श्री फल
रखते हो, पर हित जो आँखें सजल
कहो,
अहो,
हो कहाँ के
इस जहाँ के,
लगते ही नहीं

तुम रखते ही नहीं,
गैरों में
किसी को पैरो में
रखते ही नहीं
दिल के सिवा
अय ! मेहरवाँ ।।फलं।।

क्यूँ न चढ़ाऊँ,
चढ़ाऊँ क्यूँ न तुम्हें अरघ
हटके दुनिया से तुम, हो ही कुछ अलग
कहो,
अहो,
हो कहाँ के
इस जहाँ के,
लगते ही नहीं

तुम रखते ही नहीं,
गैरों में
किसी को पैरो में
रखते ही नहीं
दिल के सिवा
अय ! मेहरवाँ ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
तेरा मुस्कुरा जाना,
देखा ‘के मुझे
करे दीवाना

जयमाला
पल सुकून पा जाता है मन मेरा
तेरे नकदीक आके
खिल प्रसून सा जाता है मन मेरा

तुझे अपने सपनों में पाके
अय ! भगवन् मेरे
नकदीक आके तेरे
तेरे नकदीक आके
अपने आँगन में पड़गा-के
खिल प्रसून सा जाता है मन मेरा

पल सुकून पा जाता है मन मेरा
तेरे नकदीक आके
खिल प्रसून सा जाता है मन मेरा

तुझसे पीछे है चन्दा अमृत बरसाने में
पाछी-हवा तुझसे पीछे आगे बढ़ाने में
सच तुम जैसे तुम अकेले

तुझे अपने सपनों में पाके
अय ! भगवन् मेरे
नकदीक आके तेरे
तेरे नकदीक आके
अपने आँगन में पड़गा-के
खिल प्रसून सा जाता है मन मेरा

पल सुकून पा जाता है मन मेरा
तेरे नकदीक आके
खिल प्रसून सा जाता है मन मेरा

‘मरूँ’ कह चला, फिर भी दरिया न सुनता
विरख आते ही पतझड़ बेरुखी चुनता

तुझे अपने सपनों में पाके
अय ! भगवन् मेरे
नकदीक आके तेरे
तेरे नकदीक आके
अपने आँगन में पड़गा-के
खिल प्रसून सा जाता है मन मेरा

पल सुकून पा जाता है मन मेरा
तेरे नकदीक आके
खिल प्रसून सा जाता है मन मेरा
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
गुरु जी तुम्हें
हद से गुज़र के
चाहता हूँ मैं

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