- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 828
वन्दना वन्दना वन्दना
श्रीमन्त नन्दना वन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना ।।स्थापना।।
क्षीरजल, मण-कलश
हेत सम्यक्-दरश
भेंट सानन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना
श्रीमन्त नन्दना वन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना ।।जलं।।
झार चन्दन मलय
हेत सहजो-विनय
भेंट सानन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना
श्रीमन्त नन्दना वन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना ।।चन्दनं।।
शालि-धाँ कण अछत
हेत प्रतिमा विरत
भेंट सानन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना
श्रीमन्त नन्दना वन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना ।।अक्षतं।।
पुष्प नन्दन चमन
हेत अभिजित नयन
भेंट सानन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना
श्रीमन्त नन्दना वन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना ।।पुष्पं।।
चारु चरु घृत अमृत
हेत सम्यक्-चरित
भेंट सानन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना
श्रीमन्त नन्दना वन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना ।।नैवेद्यं।।
दीप मारुत अगम
हेत ज्ञान केवलम्
भेंट सानन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना
श्रीमन्त नन्दना वन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना ।।दीपं।।
गंध घट हट बनक
हेत भीतर झलक
भेंट सानन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना
श्रीमन्त नन्दना वन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना ।।धूपं।।
थाल फल रित सकल
हेत लोचन सजल
भेंट सानन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना
श्रीमन्त नन्दना वन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना ।।फलं।।
द्रव्य अष्टक अलग
हेत मस्तक सुरग
भेंट सानन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना
श्रीमन्त नन्दना वन्दना
वन्दना वन्दना वन्दना ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
जाऊँगा मैं तो सुना के,
न आज ही,
कल भी आ के
जयमाला
इक अजनबी को
गुरु जी आपने जो
लिया अपना
आपका क्या कहना
जलना ‘दिया’ सा
खातिर और नदिया सा
दौड़ बहना
आपका क्या कहना
इक अजनबी को
गुरु जी आपने जो
लिया अपना
आपका क्या कहना
सरगम दे
और अपने सर, गम ले
मुस्कुराते रहना
आपका क्या कहना
इक अजनबी को
गुरु जी आपने जो
लिया अपना
आपका क्या कहना
अनछुवा अधूरा
छुवा आसमाँ, पूरा किया सपना
आपका क्या कहना
इक अजनबी को
गुरु जी आपने जो
लिया अपना
जलना ‘दिया’ सा
खातिर और नदिया सा
दौड़ बहना
आपका क्या कहना
इक अजनबी को
गुरु जी आपने जो
लिया अपना
आपका क्या कहना
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
‘कि मेरा दोर रोज,
‘पाय’
गुरु जी,
तोर सरोज,
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