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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 784

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 784

तुम्हें ही बनाना, ये माटी घड़ा
तुम्हें ही बनाना, मेरा काम बिगड़ा
किसी और से नहीं,
‘जि गुरु जी, बस तुम्हीं सें
है मेरे दिल का तार जुड़ा ।।स्थापना।।

सुनहरा घड़ा,
लिये जल भरा,
न यूँ ही मैं द्वारे तुम्हारे, आके खड़ा,
तुम्हें ही बनाना, मेरा काम बिगड़ा,
किसी और से नहीं,
‘जि गुरु जी, बस तुम्हीं सें
है मेरे दिल का तार जुड़ा ।।जलं।।

लिये, सुनहरा,
गंध, घट भरा,
न यूँ ही मैं द्वारे तुम्हारे, आके खड़ा,
तुम्हें ही बनाना, मेरा काम बिगड़ा,
किसी और से नहीं,
‘जि गुरु जी, बस तुम्हीं सें ।।चन्दनं।।
है मेरे दिल का तार जुड़ा

पिटारा बड़ा,
लिये धाँ भरा,
न यूँ ही मैं द्वारे तुम्हारे, आके खड़ा,
तुम्हें ही बनाना, मेरा काम बिगड़ा,
किसी और से नहीं,
‘जि गुरु जी, बस तुम्हीं सें
है मेरे दिल का तार जुड़ा ।।अक्षतं।।

वन हरा-भरा,
लिये गुल निरा,
न यूँ ही मैं द्वारे तुम्हारे, आके खड़ा,
तुम्हें ही बनाना, मेरा काम बिगड़ा,
किसी और से नहीं,
‘जि गुरु जी, बस तुम्हीं सें
है मेरे दिल का तार जुड़ा ।।पुष्पं।।

घिरत ‘गो-निरा’,
लिये चरु निरा,
न यूँ ही मैं द्वारे तुम्हारे, आके खड़ा,
तुम्हें ही बनाना, मेरा काम बिगड़ा,
किसी और से नहीं,
‘जि गुरु जी, बस तुम्हीं सें
है मेरे दिल का तार जुड़ा ।।नैवेद्यं।।

लौं अनक्षरा,
लिये दृग्-हरा,
न यूँ ही मैं द्वारे तुम्हारे, आके खड़ा,
तुम्हें ही बनाना, मेरा काम बिगड़ा,
किसी और से नहीं,
‘जि गुरु जी, बस तुम्हीं सें
है मेरे दिल का तार जुड़ा ।।दीपं।।

लिये घट बड़ा,
गंध मन-हरा,
न यूँ ही मैं द्वारे तुम्हारे, आके खड़ा,
तुम्हें ही बनाना, मेरा काम बिगड़ा,
किसी और से नहीं,
‘जि गुरु जी, बस तुम्हीं सें
है मेरे दिल का तार जुड़ा ।।धूपं।।

नन्द-वन फरा,
लिये फल निरा,
न यूँ ही मैं द्वारे तुम्हारे, आके खड़ा,
तुम्हें ही बनाना, मेरा काम बिगड़ा,
किसी और से नहीं,
‘जि गुरु जी, बस तुम्हीं सें
है मेरे दिल का तार जुड़ा ।।फलं।।

लिये मण जड़ा,
थाल द्रव निरा,
न यूँ ही मैं द्वारे तुम्हारे, आके खड़ा,
तुम्हें ही बनाना, मेरा काम बिगड़ा,
किसी और से नहीं,
‘जि गुरु जी, बस तुम्हीं सें
है मेरे दिल का तार जुड़ा ।।अर्घ्यं।।

हाईकू
गई खो काली रैन,
गुरु जी ने, थे ही खोले नैन

जयमाला

वसे हो तुम,
अय ! दृग्-नम,
वसे हो तुम, नैनों में उस तरह
‘जि श्री गुरू
वसे खुशबू फूलों में जिस तरह

वसे हो तुम,
चाँद में चाँदनी जिस तरह
हवाओं में रागिनी जिस तरह
अय ! दृग्-नम,
वसे हो तुम, नैनों में उस तरह

वसे हो तुम,
तितली में रंग जिस तरह
जलधी में तरंग जिस तरह
अय ! दृग्-नम,
वसे हो तुम, नैनों में उस तरह

वसे हो तुम,
दरिया में रवानी जिस तरह
दिया में जिन्दगानी जिस तरह
अय ! दृग्-नम,
वसे हो तुम नैनों में इस तरह

वसे हो तुम,
पास माँ दुआएँ जिस तरह
आसमाँ ताराएँ जिस तरह
अय ! दृग्-नम,
वसे हो तुम, नैनों में उस तरह
‘जि श्री गुरू
वसे खुशबू फूलों में जिस तरह

।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

हाईकू
‘जि हमेशा की तरह,
सँभालिये आ,
हूँ परेशां

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