- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 763
खड़े-खड़े जमीं,
जो मैं छू रहा आसमाँ
है और कुछ नहीं, सब तेरा ही करिश्मा
अय ! मेरे बागवां
हूँ मैं बड़ा ही भागवां
जो मेरे जीवन में आया तू
लेकर के खुशबू ।।स्थापना।।
लाया हूँ नीर, क्षीर-अर्णव मैं ।
गुरु रूप में,
पानें तुम्हें ही भव-भव में ।।जलं।।
लाया हूँ नन्दन चन्दन द्रव मैं ।
गुरु रूप मे,
पानें तुम्हें ही भव-भव में ।।चन्दनं।।
लाया हूँ अक्षत अक्षत नव मैं ।
गुरु रूप मे,
पानें तुम्हें ही भव-भव में ।।अक्षतं।।
लाया हूँ गुल मंजुल छव में ।
गुरु रूप मे,
पानें तुम्हें ही भव-भव में ।।पुष्पं।।
लाया हूँ अरु चरु घृत गोरव मैं ।
गुरु रूप मे,
पानें तुम्हें ही भव-भव में ।।नैवेद्यं।।
लाया हूँ ज्योति भाँती रवि मैं ।
गुरु रूप मे,
पानें तुम्हें ही भव-भव में ।।दीपं।।
लाया हूँ सार्थ स्वर्ण सौरभ मैं ।
गुरु रूप मे,
पानें तुम्हें ही भव-भव में ।।धूपं।।
लाया हूँ फल अमृत ऋत सब मैं ।
गुरु रूप मे,
पानें तुम्हें ही भव-भव में ।।फलं।।
लाया हूँ वस-विध सरब दरब मैं,
गुरु रूप मे, पानें तुम्हें ही भव-भव में,
खड़े-खड़े जमीं,
जो मैं छू रहा आसमाँ
है और कुछ नहीं, सब तेरा ही करिश्मा
अय ! मेरे बागवां
हूँ मैं बड़ा ही भागवां
जो मेरे जीवन में आया तू
लेकर के खुशबू ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
पता,
करीब गुरु चञ्चलता,
हो चले लापता
जयमाला
यही कल थी,
इस पल भी,
है ख्वाहिश यही कल की,
रंग अपने लो रँगा
माहन्त सन्त सदलगा
पीछे अपने लो लगा
माहन्त सन्त सदलगा
सुदूर कल की,
है खबर नहीं पल की,
निंदिया मोह से जगा
पीछे अपने लो लगा
रंग अपने लो रँगा
सुदूर कल की,
है खबर नहीं पल की,
तेरा-मेरा-पन भगा
निंदिया मोह से जगा
पीछे अपने लो लगा
रंग अपने लो रँगा
सुदूर कल की,
है खबर नहीं पल की,
कमण्डलु दे पीछिका
निंदिया मोह से जगा
पीछे अपने लो लगा
रंग अपने लो रँगा
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
ले चालो उस ग्राम,
आगे जिसके नहीं मुकाम
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