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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 742

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 742

हाईकू
शीश झुकाते ही गुरु को,
‘कि रीझ जाते प्रभु लो ।।स्थापना।।

सब ही तो लुटा दिया,
जग को जग का,
‘जि गुरु जी ने, क्या न लौटा दिया
और तो और,
अभी भी रहे लुटा, भर-भर अंजुरी
मुस्कान मिसरी घुरी
वाणि मुरली दूसरी ।।जलं।।

पाके तुझे,
तेरा हो जाने को चाहता है,
तुझमे खो जाने को चाहता है,
इक अजीबो-गरीब
हैं सुकून तेरे करीब
तभी तो मेरा
देखते जो तुझे,
न पलक झपाने का करता है,
बिन रुके तुझे,
अथक सुनते जाने का करता है ।।चन्दनं।।

भले न सिर्फ मेरा तू
मैं तो सिर्फ तेरा हूँ
था तेरा और तेरा रहूँगा
साथ विश्वास
लेकर के आश
और आने की, तेरे कुछ पास
दास बनने की तेरा कुछ खास
सारी जिन्दगी
मैं तुम्हारी बन्दगी करता रहूँगा
था तेरा और तेरा रहूँगा ।।अक्षतं।।

दुर्भावों से बचा ।
लो पाँवों में बसा ।।
अँधेरों से बचा ।
लो पैरों में बसा ।।
धिक् मरणों से बचा ।
लो चरणों में बसा ।।
प्रार्थना नाथ
रख लो ना साथ
इतनी-सी
सिर्फ इतनी-सी कामना
ना करना मना ।।पुष्पं।।

घर-आहार आप क्या पा गये ।
अमृत धार आप क्या पा गये ।
पाद-मूल आप क्या पा गये ।
पाद-धूल आप क्या पा गये ।
फूले न समा रहे ।
आज हम, फूले न समा रहे ।।नैवेद्यं।।

हर-गम भर दो सरगम
मैं खतम कर दो, पाप-गुम
गुम-गम कर दो दृग् नम
भर दो लाजो शरम,
करके रहमो करम
जि गुरु जी तनिक
अपने सा ही इक,
लो बना मुझे राही ।
हंसा-माफिक
अय ! अहिंसा पथिक ।
भाग मेरा-शाही
दो अपने सा ही लिख ।।दीपं।।

जब से लगी लगन
रहती है रात-दिन, परिणति जागी ।
जब से लगी लगन
वो क्षण ‘कि ये क्षण, दुर्मति भागी ।
लगन लागी
मेरी लगन लागी
गुरुदेव चरणों से
लगन लागी
मेरी लगन लागी ।।धूपं।।

तुम्हारे सिवा मेरा कोई और ना
मेरा हाथ तुम, मत छोड़ना
सह लेंगे हम
सारे सितम
इस जहाँ से भी, उस जहाँ से भी
लड़ लेंगे हम ।।फलं।।

दुआओं में तेरी,
घनी बरगदी छावों में तेरी,
वो जादू है,
एक हटके सुकूँ है
नूरानी आँखें खुदा-सीं,
नम सीं तेरी जुदा-सीं,
जो और कहीं नहीं, वो खुशबू है
दुआओं में तेरी,
घनी बरगदी छावों में तेरी,
वो जादू है,
दूजा खुदा तू है ।।अर्घं।।

*हाईकू*
ठण्डी में धूप गुनगुनी,
श्री गुरु जी
सुर-धुनी

जयमाला
नजर, इक नजर
कर दीजिये गुरुवर
चाहिये न फिर सहारा और किसी का
पार रहेगा न फिर हमारी खुशी का

छत्र-छाँव आपकी
मिल जाये मुझे बस
रज पाँव आपकी

देहलीज़ आपकी
मिल जाये मुझे बस
देशना अजीज़ आपकी

पेंसिल छुई आपकी
मिल जाये मुझे बस
पुरानी-पीछि आपकी
चाहिये न फिर सहारा और किसी का
पार रहेगा न फिर हमारी खुशी का
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

*हाईकू*
‘जी’ बिन गुरू वैसे ही,
पंछी बिन तरु जैसे ‘कि

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