- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 737
हाईकू
भाग जगाते,
गुरु खिवैय्या,
नैय्या, पार लगाते ।।स्थापना।।
तुम भू-द्यु में न खींचो लकीर,
सो भेंटूँ नीर ।।जलं।।
जैसा भवन, तुम्हें वैसा वन,
सो भेंटूँ चन्दन ।।चन्दनं।।
भेंटूँ शालि-धाँ,
तुम्हें कुटिया एक कोठी आलिशाँ ।।अक्षतं।।
बँगला एक झुपड़िया तुम्हें,
सो भेंटूँ पुष्प मैं ।।पुष्पं।।
तुम्हें मकान एक श्मशान
भेंटूँ सो पकवान ।।नैवेद्यं।।
तुम्हें हूबहू कोठी जैसी कुटिया,
सो भेंटूँ ‘दीया’ ।।दीपं।।
तुम्हें अटारी टपरी एक रूप,
सो भेंटूँ धूप ।।धूपं।।
वैसा जंगल तुम्हें जैसा महल,
सो भेंटूँ फल ।।फलं।।
मकां, मशां में न तुम्हें फरक,
सो भेंटू अरघ ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
न करें,
फिक्र कल, गुरु हमें न देते करने
जयमाला
उतर आये जमीं, आज चाँद तारे
गुरु जी जो पधारे
क्योंकि आज गाँव म्हारे
आज चाँद तारे
उतर आये जमीं
सो है ही लाजमी
हो गई जन्नत लो गलियाँ
पा गई रंगत नव कलियाँ
वाह ! खूब
वाह ! वाह ! खूब
अनछुये से, छूये नजारे
गुरु जी जो पधारे
खो रहीं खामोशी पायल
बो रहीं मदहोशी कोयल
वाह ! खूब
वाह ! वाह ! खूब
अनछुये से, छूये नजारे
गुरु जी जो पधारे
बनी चन्दन-चूरी, धूली
इन्द्र धनुषी नभ रंगोली
वाह ! खूब
वाह ! वाह ! खूब
अनछुये से, छूये नजारे
गुरु जी जो पधारे
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
उड़ेल दी जो आपने कृपा,
गुरुदेव शुक्रिया
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