परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 73
आशीर्वाद में ।
जादू इनके हाथ में ।।
जिसके साथ में, सदगुरु उसके वारे-न्यारे ।।
जग से न्यारे ।
सबसे प्यारे ।।
शरण सहारे ।
तारण हारे ।।
विद्यासागर गुरु हमारे ।।
।।स्थापना।।
पूँजी लाया था, आया जब,
अब क्या ? खाली हाथ भो !
यहाँ बटोरा दौड़-दौड़ कर,
कब चल चाले साथ वो ॥
जाने वाला साथ हमारे,
गोरा काला काम है ।
करो ‘कि बार न इस विसराऊँ,
अपना आतम राम है ।। जल॑।।
रोज जनाजा देख रहा हूँ,
उठता अपनी आँख से ।
अपनी मौत न देख रहा हूँ,
बैठ दवानल साख पे ।।
शिशु माने जल,जल-जल भी मन,
लेता कहाँ विराम है ॥
करो ‘कि बार न इस विसराऊँ,
अपना आतम राम है ।।चन्दनं।।
उठा गर्भ सौगंध यहाँ से,
निकल करूँगा साधना ।
चका-चौंध विष-विषय ठग चला,
साधूँ हहा ! विराधना ।
साध असादन आने वाली,
जीवन अन्तिम शाम है ।
करो ‘कि बार न इस विसराऊँ,
अपना आतम राम है ।।अक्षतं।।
रुला चुका मैं माई लाखन,
पुनः धार वैराग को ।
हृदय धधकती बुझा न पाया,
किन्तु वासना आग को ।
आत्म प्रदेश हरेक हमारा,
रटता त्राही माम् है ।।
करो ‘कि बार न इस विसराऊँ,
अपना आतम राम है ।।पुष्पं।।
शनै: शनै: मेरे मित्रों के,
मंजिल हुई करीब है ।
मृग कस्तूर भाँत निध अपनी,
वंचित जिया गरीब है ।।
चाह छाहरी लेकिन मन कब,
दे कदमन विश्राम है ।
करो ‘कि बार न इस विसराऊँ,
अपना आतम राम है ।।नैवेद्यं।।
पाये कष्ट निगोद माँहिं कब,
आने वाले याद वो ।
विसरा, नरकन मर्म भेदी था,
कीना सींह-निनाद जो ॥
पशु पर्याय प्राप्त दुख निध का,
कहाँ कोई भी ठाम है ।
करो ‘कि बार न इस विसराऊँ,
अपना आतम राम है ।।दीप॑।।
श्वान भाँत जा शीशमहल मैं,
गहल सुमर हा ! भूसता ।
नहीं मसूड़े छिलते तब तक,
मुख ले, हड्डी चूसता ॥
पूंछ हिला मुख और ताँकना,
लगा हाय ! अभिराम है ।
करो ‘कि बार न इस विसराऊँ,
अपना आतम राम है ।।धूपं।।
दूजों की चुगली खाने मन,
मचले सुध-बुध छोड़ के ।
करने मनमानी हा ! दौड़े ,
प्रीति धर्म की तोड़ के ॥
यूँ मन बगुले सा बाहिर ही,
श्वेत भीतरी श्याम है ॥
करो ‘कि बार न इस विसराऊँ,
अपना आतम राम है ।।फल॑।।
अब तक आर्त रौद्र दुर्ध्यानन,
कीनी दृढ़ संप्रीत है ।
भव शरीर भोगों से अन्तस् ,
रंच कहाँ भय भीत है॥
आस्रव भावन ओत-प्रोत यूँ,
मेरी सुबहो शाम है ॥
करो ‘कि बार न इस विसराऊँ,
अपना आतम राम है ।।अर्घ्यं।।
“दोहा”
करुणा धन धारक नहीं,
जिन समान तिहुलोक ।
गुरु विद्या मेरी तिन्हें,
मन वच तनतः ढ़ोक ॥
“जयमाला”
।। ले दिया, मैं उतारूॅं आरतिया ।।
तुम मिले मुझे, सब कुछ मिल गया ।
दीप ने पाई ज्योती ।
सीप ने पाया मोती ।
नदारद बुद्धी खोटी ।
नेह निस्पृह बपोती ।।
श्वास पा गया, लौं जाता दिया ।।
ले दिया, मैं उतारूॅं आरतिया ।।१।।
चांद पा गया चकोरा ।
नाद पाया घन मोरा ।
हाथ मन अन्तर कोरा ।
गांठ बिन सुलझा डोरा ।।
टकटकी लगा, निहारूॅं मूरतिया ।
ले दिया, मैं उतारूॅं आरतिया ।।२।।
अमृत बरषाये चन्दा ।
स्वर्ण पा गया सुगन्धा ।
भक्ति में मनुआ अंधा ।
मात श्री मन्ती नन्दा ।।
और न तुम सा देखी दुनिया ।
ले दिया, मैं उतारूॅं आरतिया ।।३।।
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।
“दोहा”
हाथ जोड़ कर आपसे,
करूँ अरज नत माथ ।
जहाँ आप जाते वहीं,
साथ लें चलो नाथ ॥
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