परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 68
पाप नाग क्षय ।
हाँप भाग भय ।।
मनु मोरनी आवाज,
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
जय जयतु जय ।।स्थापना।।
क्षीर नीर घट ।
नीर-क्षीर मत ।।
हित भेंट आज |
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
पाप नाग क्षय ।
हाँप भाग भय ।।
मनु मोरनी आवाज,
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
जय जयतु जय ।।जलं।।
अन्य गंध घट ।
नन्त गंध पथ ।।
हित भेंट आज |
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
पाप नाग क्षय ।
हाँप भाग भय ।।
मनु मोरनी आवाज,
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
जय जयतु जय ।।चन्दनं।।
धाँ अटूट कण ।
ध्याँ अटूट धन ।।
हित भेंट आज |
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
पाप नाग क्षय ।
हाँप भाग भय ।।
मनु मोरनी आवाज,
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
जय जयतु जय ।।अक्षतं।।
विरज निरा गुल ।
सहज निरा…कुल ।।
हित भेंट आज |
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
पाप नाग क्षय ।
हाँप भाग भय ।।
मनु मोरनी आवाज,
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
जय जयतु जय ।।पुष्पं।।
थाल चारु चर ।
न्यार चारु स्वर ।।
हित भेंट आज |
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
पाप नाग क्षय ।
हाँप भाग भय ।।
मनु मोरनी आवाज,
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
जय जयतु जय ।।नेवैद्यं।।
द्वीप ज्योति घृत ।
सीप-मोति कृत ।।
हित भेंट आज |
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
पाप नाग क्षय ।
हाँप भाग भय ।।
मनु मोरनी आवाज,
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
जय जयतु जय ।।दीप॑।।
नूप धूप घट ।
खूब-डूब पथ ।।
हित भेंट आज |
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
पाप नाग क्षय ।
हाँप भाग भय ।।
मनु मोरनी आवाज,
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
जय जयतु जय ।।धूपं।।
नारिकेल हट ।
न्यारि केल सत् ।।
हित भेंट आज |
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
पाप नाग क्षय ।
हाँप भाग भय ।।
मनु मोरनी आवाज,
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
जय जयतु जय ।।फल॑।।
दिव्य द्रव्य वस ।
नव्य-भव्य जश ।।
हित भेंट आज |
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
पाप नाग क्षय ।
हाँप भाग भय ।।
मनु मोरनी आवाज,
जय जयतु जय विद्या सागर महाराज ।
जय जयतु जय ।।अर्घं।।
“दोहा”
संकट में संबल बने,
जिनका भव-हर नाम ।
श्री गुरु विद्या सिन्धु वे,
सविनय तिन्हें प्रणाम ॥
“जयमाला”
देख आपका रूप सलोना,
नयन कहाँ छकते ।
आप दिगम्बर वाने में,
श्री वीर प्रभु लगते ॥
ब्रह्म मूहरत दस्तक दे नहीं,
पाता उठ जाते ।
निशि सम्बन्धी अघ निरसन में,
रंच न अलसाते ॥
निज घर से बाहिर मुहूर्त फिर,
कदम कहाँ धरते ।
आप दिगम्बर वाने में ,
श्री वीर प्रभु लगते ॥
तव सुबहो आचार्य भक्ति से,
रहती कब रीती ।
पुरु श्रुत गुरु आज्ञा पालन से
सहजो ही प्रीती ॥
देव वन्दना पल पिच्छी,
बाँसुरी बना फबते ।
आप दिगम्बर वाने में ,
श्री वीर प्रभु लगते ॥
शिष्यों को देते अपना,
भरपूर नेह स्वामी ।
अशन-पान-प्रासुक श्रावक-
घर, लें अन्तर्-यामी ॥
ईर्या पथ भक्ती पल शिष्यन,
उडु बिच शशि दिखते ।
आप दिगम्बर वाने में ,
श्री वीर प्रभु लगते ॥
सामायिक में सजग पहरि से,
आप जागते हैं ।
दिव्य देशना पा तव भवि,
बड़भाग मानते हैं ॥
ज्ञान ध्यान में निरत निरन्तर,
तदपि कहाँ थकते ।
आप दिगम्बर वाने में ,
श्री वीर प्रभु लगते ॥
दिवस दोष निरसन में कब,
किससे पीछे हो तुम ।
साँझ प्रमादी भूल भूलैया में,
करते कब गुम ॥
यूँ सुबहो से होय शाम,
बिन वैशाखी चलते ।
आप दिगम्बर वाने में ,
श्री वीर प्रभु लगते ॥
“दोहा”
शिशु मैं, गुण कीर्तन तिरा,
गिरि सुमेरु का श्रृंग ।
पा पाया जितना वही,
शिव तक देवे संग ॥
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